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झानप्रदीपिका। शनिभौमो यदि स्यातां सुरापानवती भवेत् ।
सादित्यौ स्थितौ वन्ध्या शुक्र सुखवती भवेत् ॥२०॥ द्वादश में यदि शनि और भौम हों तो मदिरा पान करने वाली, राहु और सूर्य हों तो पन्ध्या और शुक्र हो तो सुखी होगी।
इति विवाहकाण्डः
क्षुरिकालक्षणं सम्यक प्रवक्ष्यामि यथा तथा ।
राहुणा रहिते चन्द्रे शत्रुभंगो भविष्यति ॥१॥ अब क्षुरिका-युद्ध संबन्धी–लक्षणों को कहता हूं यदि चंद्रमा राहु से रहित हो तो शत्रु अवश्य नष्ट होगा यही उत्तर प्रानिक को देना चाहिये ।
नीचारिक्तास्तु (2) पश्यंति यदि खड्गस्य भंजनम् ।
शुभग्रहयुते चन्द्रे दृष्टे चास्त्रशुभं वदेत ( भवेत् ) ॥२। चन्द्रमा को यदि नीच और शत्रु ग्रह देखते हों तो तलवार का टूटना और शुभ ग्रह के युत और द्रुष्ट होने पर उसकी सफलता बतानो चाहिये।
पापग्रहसमेतेषु छत्रारूढोदयेषु च ।
येषु प्रष्टा स्थितः किंतु तदत्रण हतो भवेत् ॥३॥ छत्र, आरूढ और लग्न यह पाप ग्रह दृढ़ युक्त हो और जिसमें ग्रहस्थित हो उसके शास्त्रानुसार उस पर का मरण कहना।
अथवा कलहः खड्गः परेणापहृतो भवेत् ।
एषु स्थानेषु सौम्येषु खड्गस्तु शुभदो भवेत् ॥४॥ या कलह होगा या तलवार कोई दूसरा चुरा ले जायगा इन्हीं स्थानों में शुभ ग्रह ह तो खड्ग शुभ फल तथा विजय-का दाता होगा।
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