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ज्ञानप्रदीपिका। पुत्रोत्पत्तिनिमित्ताय त्रयः प्रश्ना भवन्ति हि।
उदयारूढछत्रेषु राहुश्चेद् गर्भमादिशेत् ॥१॥ पुत्रोत्पति के लिये तीन प्रश्नों का उत्तर वर्णन किया गया- लग्न आरूढ़ और छत्र में यदि राहु हो तो गर्भ बताना।
लग्नाद्वा चन्द्रलनाद्वा त्रिकोणे सप्तमेऽपि वा।
बृहस्पतिः स्थितो वापि यदि पश्यति गर्भिणी ॥२॥ लग्न किंवा चन्द्र से त्रिकोण ( ५, ६ ) या सप्तम में बृहस्पति स्थित होकर प्रश्न लग्न को देखता हो तो गर्भिणी होगी।
शुभवर्गेण युक्तश्चेत् सुखप्रसवमादिशेत् ।
अरिनीचग्रहाश्चेत् सुतारिष्टं भविष्यति ॥३॥ शुभ वर्ग से युक्त हो तो प्रसव सुख से और नोच और शत्रु-ग्रह से युत इष्ट हो ने पर बालारिष्ट होता है।
प्रश्नकाले तु परिधौ दृष्टे गर्भवती भवेत् ।
तदन्तस्थग्रहवसात् पुंस्त्रीभेदं वदेदबुधः ॥४॥ प्रश्न लग्न परिधि ग्रह दृष्ट हो तो वह स्त्री गर्भवती है ऐसा उपदेश करना और परिधि लग्न के बीच में स्त्रीकारक अथवा पुरुष कारक जो ग्रह बलवान हों उनके अनुसार स्त्री पुरुष का जन्म बताना चाहिये।
यत्र तत्र स्थितश्चन्द्रः शुभयुक्ते तु गर्भिणी। न लग्नानि न भूतेषु शुक्रादित्येन्दवः क्रमात् ।।५।।
तिष्ठन्ति चेन्न गर्भ चेत्स्यादेकत्रैते (2) स्थितेन वा। जहां कहीं भी चन्द्रमा शुभ युक्त हो तो गर्भ है ऐसा निर्देश करना और लग्न भूतादि . में अपने युक्त सूर्य चन्द्रमा पृथक् हो अथवा एकत्र ही जहाँ कहीं भी हो तो गर्भ नहीं है ऐसा उपदेश करना चाहिये।
स्त्रीपविलोके गर्भिण्यः प्रष्टुर्वा तत्र कालिके ॥६॥ परिवषादिके दृष्टे तस्या गर्भ विनश्यति ।
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