________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३८
ज्ञानप्रदीपिका।
परिधि चन्द्रमा धनुष की दृष्टि में प्रश्न हों तो कुष्ठ रोग किंवा मृत्यु बताना। केतु से भूतबाधा और सूर्य से सब प्रकार की मिरगो या पिशाचवाधा, शनि से श्वास कास और शूल तथा मंगल से शीत ज्वर बताना।
इन्द्रकोदण्डपरिधौ दृष्टे प्रश्न तु रोगिणां ।
नव्याधिशमनं किंचिदायं पश्यंति चेत् शुभा॥२८॥ इन्द्र धनुष परिधि दृष्टि में यदि रोगीका प्रश्न हो तो रोग की कुछ भी शांति नहीं हो तो यदि स्थान को कभी राहु नहीं देखता हो यह स्थिति होती है । (?)
रोगशान्तिर्भवेच्छीघ्र मित्रस्वात्युच्चसंस्थिताः । यदि शुभ ग्रह उच्च मित्र और स्वगृही हो तो रोगशांति शीघ्र बताना चाहिये ।
शिरोललाटे 5 नेत्रे नासाश्रु त्यधराः स्मृताः ॥२६॥
चिबुकश्चांगुलिश्चैव कृत्तिकायु डवो नव । सिर, ललाट, मौं, आंख, नाक, कान, होंठ, चिवुक और अंगुलि ये कृतिकादि नत्र नक्षत्रों के स्थान हैं।
कंठवक्षः स्तनं चैव गुदमध्यनितंबकाः॥३०॥
शिश्नमेद्रोरवः प्रोक्ता उत्तराद्या नवोडवः । कंठ, छाती, स्तन, गुदा, कटि, नितंब, उपस्थ, मेद्र और उरू ये उत्तरादि नव नक्षत्रों के स्थान है।
जानुजंघापादसंधिपृष्ठान्तस्तलगुल्फकं ॥३१॥
पादाय नाभिकांगुल्यो विश्वांद्या नवोडवः । जानु, जंघा पादसंधि, पोठ, अन्तस्तल, गुल्क, पैर के आगे का भाग, नामि, अंगुल ये उत्तराषाढ़ादि नव नक्षत्रों के स्थान हैं।
उदयःवशादेवं ज्ञात्वा तत्र गदं वदेत् ॥३२॥ अंगनक्षत्रकं ज्ञात्वा नष्टद्रव्यं तथा वदेत् ।
For Private and Personal Use Only