________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
३६
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्ञानप्रदीपिका |
एतयोश्चंद्रभुजगौ तिष्ठतो यदि चोदये ॥१४॥ गरादिना भवेदव्याधिः न शाम्यति न संशयः । पृष्टोदये क्षेत्रछत्रे व्याधिमोक्षो न जायते
यदि इन्हीं या अष्टम स्थान में चन्द्रमा और राहु या लग्न में एक हो और अभ्य इन स्थानों में तो विष देने से व्याधि हुई है और वह शान्त न होगी । पृष्ठोदय लग्न हो और लग्नेश की राशि ही छत्र हो तो व्याधि का शमन नहीं हुआ है ।
व्याधिस्थानानि चैतानि मूर्धा व भुजः करः । वक्षःस्थलं स्तनौ कुक्षिः कक्षं मूलं च मेहनं ॥ १६ ॥ उरू पादौ च मेषाद्या राशयः परिकीर्तिताः ।
मेषादि राशियों के लग्न होने से क्रमश: इस प्रकार व्याधि स्थान जानना चाहियेसिर, मुंह, बाहु, हाथ (हथेली), छाती, स्तन, कोख, कांख, मूल, उपस्थ, जंघा और
चरण ।
कुजो मूर्ध्नि मुखे शुक्रौ गण्डयोर्भुजयोर्बुधः ||१७|| चन्द्रो वक्षसि कुक्षौ चहनौ नाभौ रविर्गुरुः । उर्वोः शनिरहिः पादौ ग्रहाणां स्थानमीरितम् || १८ ||
में
ग्रहों का स्थान इस प्रकार है- मंगल मूर्द्धा में, शुक्र मुंह में, गण्डस्थल और भुज बुध, चन्द्र वक्षःस्थल में और कोख में, हनु ( ढोंड़ी ) और नाभि में क्रमश: सूर्य और बृहस्पति, जंघों में शनि, चरणों में राहु ।
स्थानेष्येतेषु नष्टं च भवेदेतेषु राशिषु ।
पापयुक्तेषु दृष्टेषु नीचसक्तेषु सम्भवः ॥ १६ ॥
इन स्थानों में अथवा इन राशियों में पाप ग्रहों का दृष्टियोग हो और उस समय में नष्ट हुआ हो तो तथा नीचासक्त में हो तो रोग का सम्भव जानना चाहिये ।
पश्यंति चेद ग्रहाश्चंद्र व्याधिस्थानावलोकनम् । पूर्वोक्तमासवर्षाणि दिनानि च वदेत्सुधीः ||२०||
यदि व्याधि स्थान को देखने वाले चंद्रमा पर ग्रहों की दृष्टि हो तो पहले बताये हुए दिन, मास और वर्ष का निर्देश करना चाहिये ।
For Private and Personal Use Only