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ज्ञानप्रदीपिका । स्वप्न यानि च पश्यन्ति तानि वक्ष्यामि सर्वदा । मेषोदये देवग्रहं प्रसादान् संवदंति च ॥१॥ वृषोदये दिनाधीशं ज्ञातिदेशस्य दर्शनम् ।
वृश्चिकस्योदये करं व्याकुलं मृतदर्शनम् ॥२॥ स्वप्न में मनुष्य जो देखता है उसे भी बताता हूं-- मेष लग्न में देवग्रह देखता है और प्रसन्नता की बातें सुनता है और कहता है। वृष में सूर्य को, जाति को देश को और वृश्चिक में क्रूर, व्याकुल और मृतक को देखता है ।
मिथुनस्योदये विप्रान् तपस्विवदनानि च । कुलीरस्योदये क्षेत्रं . . . . . . . . . . . 'पुनः ॥३॥ तृणान्यादाय हस्ताभ्यां गच्छन्तीरिति निर्दिशेत् ।
सिंहोदये किरातं च महिषीभिर्निपातितम् ॥४॥ मिथुन लग्न में विप्र और तपस्वियों के मुंह कर्क में खेत........ तथा हाथों में तृण लेकर जते हुओं को देखा जाता है। सिंह में किरात को और भैंस से अपने को निपातित या उसी फिरात को निपातित देखा जाता है ।
कन्योदयेऽपि चारूढ़ (2) मुण्डस्त्रीभिर्द्विपादयः । तुलोदये नृपान् स्वर्ण वणिजश्च स पश्यति ॥५॥ वृश्चिकस्योदये स्वप्न पश्यन्त्यलिमृगादयः। वृषभश्च तथा ब्रूयात् स्वप्नदृष्टो न संशयः ॥६॥ उदये धनुषः पश्येत् पुष्पं पक्वफलं तथा। मृगोदये दिनेन्दुं च रिपं स्वप्नषु पश्यति ॥७॥
कुंभोदये च मकरं मीनस्वप्न जलाशयः। कन्या में स्वप्न देखे तो मुण्डित स्त्री हाथी आदि, तुला में राजा, स्वर्ण, बनिया आदि वृश्चिक में भौंरा मृग, बैल आदि, धनु में फूल, पक्क फल आदि, मकर में दिन का चाँद शत्रु, कुंभ में घड़ियाल ( मगर), मीन में जलाशय दिखाई देता है।
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