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ज्ञानप्रदीपिका। यात्री द्विस्वभाव लग्न में जाने से दुःशकुन देखता है। स्थिर लग्न में शकुनों के प्रभाव से यात्रा हो स्थगित कर देता है और चर लग्न में शुभ शकुनों के प्रभाव से सफ. लतापूर्वक लौट आता है।
चन्द्रोदये दिवाभीतचषपारावतादयः ॥२॥
शकुनं भविता दृष्टं (2) इति ब्याद्विचक्षणः । लग्न में यदि चन्द्र हो तो गस्ते में उल्लू कबूतर आदि का शकुन होगा-यह बताना चाहिये।
राहदये तथा काकभरद्वाजादयः खगाः ॥३॥
मन्दोदये कुलिंगः स्यात् ज्ञोदये पिंगलस्तथा । लम में राहु हो तो काक भरवूल आदि, शनि हो तो चटक और बुध हो तो बन्दर ।
सूर्योदये च गरुडः सव्यासव्यवशाद् वदेत् ॥४॥ स्थिर राशौ स्थिरान् पश्येत चरे तिर्यग्गता यदि ।
उभयेऽध्वनि वृत्तस्य ग्रहस्थितिवशादमी ॥५॥ सूर्य लग्न में हो दाहिने बांये को विचार के गरुड़ बताना चाहिये। स्थिर में स्थिर वस्तु, घर में चर-पक्षी आदि---और द्विस्वभाव में रास्ते से लौटते हुए आदमी दिखाई पड़ते हैं। यही बात ग्रहस्थिति के वश से इस प्रकार है।
राहोगौलिविधोश्चात्र ज्ञास्य चुन्नधरी भवेत् । दधि शुक्रस्य जीवस्य क्षीरसर्पिरुदाहरेत् ॥६॥ भानोश्च श्वेतगरुडः शिवा भौमस्य कीर्तिताः। शनैश्चरस्य वह्निश्च निमित्तं दृष्टमादिशेत् ॥७॥ शुक्रस्य पक्षिणी ब्रूयात् गमने शरटा बकाः ।
जीवकाण्डप्रकारेण वीक्षणस्य विचारयेत् ॥८॥ राहु का गौ और बिच्छी चन्द्रमा का ........."बुध का चुनधरी ( पक्षि विशेष) शुक्र का दही, बृहस्पति का दूध घी, सूर्य का श्वेत गरुड़, मंगल का शृगालियां, शनि का
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