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ज्ञान- प्रदीपिका ।
पूंछने वाले की आरूढ़ राशि का ज्ञान कर के फिर उसकी विद्या का ज्ञान करना चाहिये, आरूढ़ पर से उदय आदि का यथोक्त फल कहना चाहिये ।
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तद्राशिच्छत्रमित्युक्त शास्त्र ज्ञानप्रदीपके । आरूढां भानुगां वीथीं परिगण्योदयादिना ||२||
इसी को इस शास्त्र में राशि छत्र कहते हैं । लग्न ( उदय ) से सूर्य को जाने वाली वीथी की गणना करके
तावता राशिना छत्रमिति केचित् प्रचक्षते ।
जितनी राशि आये उसी को छत्र कहते हैं- ऐसा किसी किसी का मता है ।
मेषस्य वृषभं छत्रं मेषच्छत्रं वृपस्य च ॥३॥ युग्मकर्कटसिंहानां मेषच्छत्रमुदाहृतम् ।
कन्यायाश्च परं छत्रं तुलाया वृषभस्तथा ॥४॥ वृषभस्य युगच्छत्रं धनुषो मिथुनं तथा । नकस्य मिथुनच्छत्रम् मेपः कुंभस्य कीर्तितम् ॥५॥ मीनस्य वृषभच्छत्रं छत्रमेवमुदाहृतम् ।
मेष का छत्र वृष, वृष का मेष, मिथुन, कक और सिंह का मेष, कन्या और तुला का मेष, वृश्चिक और धनु का मिथुन, मकर का भी मिथुन, कुंभ का मेष और मीन का वृष छत्र राशि है।
उदयात् सप्तमे पूर्ण अर्ध पश्येतिकोणभे ॥ ६ ॥ चतुरस्त्रे त्रिपादं च दशमे पादएव च ॥
अपने से सप्तम स्थानीय ग्रह को ग्रह पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, चतुरस्त्र का अर्थ केन्द्र हैं। पर, यहां केवल चतुर्थ मात्र से तात्पर्य है । तीन चरण से त्रिकोण ( ५, ६, ) 1 भाषा यानी दो चरण से और दशम को एक ही चरण से देखता है ।
को
एकादशे तुतोये च पदार्धं वीक्षणं भवेत् ॥७॥
ग्यारहवें और तीसरे स्थान को ग्रह आधे चरण से देखता हैं ।
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