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ज्ञानप्रदोपिका। कुजे मेषगते व्यंगं बुधे नर्तकगायको । गुरुशुक्रदिनेशेषु वणिजो वस्त्रजीवितः ॥३५॥ चन्द्रे तथागते मन्दे सिंहस्थे रिपुचिंतनम् ।
वृषस्थे महिषी तौले बक्र ण वृश्चिके गतम् (?) ॥३६॥ मेष में कुज हो तो अंगहीन, बुध हो तो नर्तक और गायक, गुरु हो तो वणिक, शुक्र है। तो वस्त्रजीवी, xxxxचन्द्र हो तौभी वही, शनि यदि सिंह में हो तो शत्रु, बृष में हो तो भैंस, x x x x x x x x
मेषगे सूर्यतनये मृत्युः क्लं शादयस्तथा ।
मित्रादिपञ्चवर्गञ्च ज्ञात्वा ब्रूयात्पुरोक्तितः ॥३७॥ शनि मेष में हो तो, मृत्यु तथा कष्ट होता है। ग्रहों का फल मित्रादि पंचवर्ग का बल बना के कहना चाहिये।
इति चिन्तनकाण्डः
धातुराशौ धातुखगे दृष्टे तच्छत्रसंयुते । धातुचिंता भवेत्तद्वत् मूलजीवौं तथा भवेत् ॥१॥ धात्वृक्षस्थे मूलखगे जीवमाहुर्विपश्चितः । जीवराशौ धातुखगे दृष्टे वा यदि मूलिका ॥२॥ मूलराशी जीवखगे धातुचिंता प्रकीर्तिता ।
धातु राशि में यदि मूल ग्रह हो तो जीव, जीन राशि में धातु ग्रह हो या उससे दृष्ट हो तो मूल और मूल राशि में जीव ग्रह हो तो धातु की चिन्ता कहनी चाहिये
धातु राशि यदि धातु खग से दृष्ट हो और धातु छत्र से युक्त हो तो धातु चिन्ता कहनी चाहिये, इसी प्रकार जीव और मूल चिन्ता भी जाननी चाहिये ।
त्रिवर्गखेटकैर्दष्टे युक्त बलशाद्वदेत् । पश्यन्ति चन्द्र चेदन्ये वदेत्तत्तद्न हाकृतिम् ।।३।।
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