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ज्ञानप्रदीपिका ।
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पूर्ववत् है, सप्तम में हो तो सब नष्ट हो गया। यदि आरूढ़ लग्न से द्वादश, षष्ठ और अष्टम में हो तो - जिसकी चिन्ता है वह नहीं होगा, धनहानि, शत्रुवल, अपना, कलत्र का माता का, पिता का निधन अनिष्ट, व्यय आदि फल कहना । ग्रहों की शुभाशुभ दृष्टि आदि का विचार भी करना ।
रवीन्द्रशुकजीवज्ञानराशिषु यदि स्थिताः । मर्त्यचिन्ता ततः शौरिदृष्टेनार्थ कुजे (?) तथा ॥ ५॥ कुजस्य कलहः शौरेस्तस्करं गरलं भवेत् । रविदृष्टेऽथवा युक्ते चिंतनादेव भूपतेः ॥ ६ ॥
यदि, रवि, चन्द्र, शुक्र, वृहस्पति और बुध मनुष्य राशि पर हों तो मत्ये की चिंता, शनि यदि देखता हो तो अर्थ विन्ता कहना | मनुष्प्रराशि पर मंगल हो तो कलह, शनि हो तो चोर था जहर की चिन्ता, रवि से दृष्ट अथवा यक्त हों तो राजा की चिन्ता कहनी चाहिये ।
इत्यारूढकाण्डः
द्वितीये द्वादशे छत्रे सर्वकार्य विनश्यति ।
गुरौ पश्यति युक्ते वा तत्र कार्य शुभं वदेत् ॥ १ ॥ तस्मिन्पापयुते दृष्टे विनाशो भवति ध्रुवम् । तस्मिन्सौम्य दृष्टे सर्व कार्य शुभं वदेत् ॥२॥ ॥ मिश्र मिश्रफलं वयात शात्र ज्ञानप्रदोषिके ।
यदि छत्र द्वितीय किंवा द्वादश हो तो सारा कार्य नष्ट होता हैं । किन्तु यदि वृहस्पति
से
युक्त किंवा दृष्ट हो तो सिद्धि होती है । पापग्रह से द्वए किंवा युक्त होने से विनाश तथा सौम्य ग्रह से दृष्ट अथवा युक्त होने पर शुभ कार्य होता है । पापग्रह से नाश शुभ ग्रह से सिद्धि होती है। दोनों हों तो मित्रफल होता है ।
पञ्चमे नवमे छत्रे सर्वसिद्धिर्भविष्यति ।
तस्मिन् शुभाशुभे दृष्टे मिश्र मिश्रफलं वदेत् ॥ ३॥
पञ्चम और नत्रम छत्र में सब कार्यों की सिद्धि होती हैं। शुभ से दृष्ट या युक्त होने पर शुभ, पाप ग्रह से अशुभ और मिश्र से मिश्र फल होता है ।
चतुर्थे चाष्टमे पष्ठे द्वादशे छत्रसंयुते । नष्टद्रव्यागमो नास्ति न व्याधिशमनं भवेत् ॥४॥
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