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ज्ञानप्रदीपिका ।
देहो जीवस्सितो जिह्वा बुधो नासेक्षणं कुजः ॥ ७॥ श्रोत्रं शनैश्चरश्चैव ग्रहावयवमीरितम् ।
बृहस्पति देह, शुक्र जीभ, बुध नाक, मंगल आँख, और शनि कान ये ग्रहों के शारीरिक अवयव हैं ।
द्विपाच्चतुष्पाद बहुपाद्दिहगो जानुगः क्रमात् ॥८॥ शंखशंबूकसंघश्च बाहुहीनान् विनिर्दिशेत् ।
दो पैर वाला, चार पैर वाला, बहुत पैर वाला, पक्षी, जंघा से चलने वाला, शंख, घाँत्रा संघ और बाहुहीन ये सूर्यादि ग्रह के भेद हैं ।
यूकमत्कुणमुख्याश्च बहुपादा उदाहृताः ॥६॥ गोधाः कमठमुख्याश्च बहुपादा उदाहृताः ।
यूक (जू) मत्कुण ( खटमल ) वगैरह ये बहुपाद कहे जाते हैं, सर्पिणो, कच्छा आदि भी इसी तरह से बहुपाद कहे जाते हैं ।
मृगमीनौ तु खचरौ तत्रस्थौ मंद भूमिजौ ॥१०॥ वनकुक्कुटकाकौ च चिंतिताविति कीर्तियेत् ।
तद्राशिस्थे भृगौ हंसः शुकः सौम्यो विधौ शिखी ॥११॥ वीक्षिते च तदा ब्रूयात् ग्रहे राहौ विचक्षणः ।
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प्रश्न लग्न यदि मकर या मोन हों और उस पर शनि या मंगल हों तो क्रमशः वनकुक्कुट और काक कहना । अपने राशि पर शुक्र हो तो हंस, बुध हो तो शुक्र, चंद्रमा हो तो मोर कहना चाहिये x X
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तद्राशिस्थे रवौ तेन दृष्टे ब्रूयात् खगेश्वरं ॥ १२ ॥ बृहस्पतौ सितबका भारद्वाजस्तु भोगिनि ।
कुक्कुटो ज्ञस्य भौमस्य दिवांधः परिकीर्तितः ॥ १३ ॥ अन्य राशिस्थखेटेषु तत्तद्राशिस्थलं भवेत् ।
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अपने राशि पर सूर्य हो तो गरुड़, वृहस्पति हो तो श्वेत वक तथा राहु हो तो भरदूल पक्षी कहना | बुध अपनी राशि पर हो तो मुर्गा, मंगल हो तो उल्लू और अन्य राशिस्व ग्रहों के लिये उन राशियों का स्थल कहना चाहिये ।