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ज्ञानप्रदोपिका।
मुद्र ज्ञस्याढकः श्वेतः भृगोश्च चणकं कुजे ॥७७॥ तिलं शशांके निष्पावं खेर्जीवोऽरुणाढकः । माषं शनेर्भुजंगस्य कुथान्यं धान्यमुच्यते ॥ ७८ ॥
बुध का मूंग, शुक्र का सफेद अरहर, मंगल का चना, चंद्रमा का तिल, सूर्य का मटर, वृहस्पति का लाल अरहर, शनि का उड़द और राहु का कुली धान्य है ।
प्रियंगुर्भूमिपुत्रस्य बुधस्य निहगस्तथा । स्वस्वरूपानुरूपेण तेषां धान्यानि निर्दिशेत् ॥८६॥
मंगल का प्रियंगु (टांत) बुध का निहग धान्य होता है। ग्रहों का धान्य उनके रूप के अनुसार ही बताना चाहिये ।
उन्नते भानु कुजयोर्वल्मीके बुधभोगिनोः
सलिले चन्द्रसितयोः गुरोः शैलतटे तथा ॥ ८० शः कृष्णशिलास्थाने मूलान्येतासु भूमिषु ।
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सूर्य मंगल का उन्नत स्थान में, बुध और राहु का बिल में, चन्द्र शुक्र का पानी में, बृहस्पति का पर्वततल में और शनि का कृष्ण शिलातल में स्थान है। इन्हीं भूमियों में मूल की चिन्ता करना |
वर्ण रसं फलं रत्नमायुधं चाक्तमूलिका ॥८१॥ (2) पत्रं फलं पक्त्रफलं त्वङ्मूलं पूर्वभाषितम् ।
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वर्ण, रस, फल, रत्न, अस्त्र, मूल, पत्र स्वक् आदि का विचार पूर्व कथित रोति से करना चाहिये ।
इति मूलकाण्ड: