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ज्ञानप्रदीपिका |
अजालिक्षुद्सस्यानि वृषकर्क तुलालता ॥ ६६ ॥ कन्यकामिथुने वृक्षे कण्टद्रुमघटे मृगे । इक्षुर्मीनधनुः सिंहाः सस्यानि परिकीर्तिताः ॥ ७० ॥
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मेष वृश्चिक इनके क्षुद्र सस्य, वृप कर्क और तुला इनकी लतायें, कन्या और मिथुन इनके वृक्ष, कुंभ और मकर इनके काँटेदार वृक्ष, मीन, धनु और सिंह इनके सस्य ईख हैं' अकंटद्रुमः सौम्यस्य क्रूराः कण्टकभूरुहाः । युग्मकण्टकमादित्ये भूमिजे ह्रस्वकण्टकाः ॥ ७१ ॥ वक्राश्च कण्टकाः प्रोक्ताः शनैश्चरभुजंगमौ । पापग्रहाणां क्षेत्राणि तथाकण्टकिनो द्रुमाः ॥७२॥
बुध के बिना काँटे के वृक्ष, क्रूर ग्रहों के भी काँटेदार वृक्ष सूर्य का दो काँटों वाला, मंगल का छोटे कांटों वाला, शनि राहु का टेढ़े कांटों वाला वृक्ष कहा गया है x X × ×। सूक्ष्म कक्षाणि सौम्यस्य भृगोर्निष्कंटकद्रुमाः ।
कदली चौषधोशस्य गिरिवृक्षा विवस्वतः ॥ ७३ ॥ बृहत्पत्रयुता वृक्षा नारिकेलादयो गुरोः । ताला : शनेश्च राहोश्च सारसारौ तरू वदेत् ॥७४ || सारहीन शनोन्द्वर्कवन्तर सारौ कपित्थकौ
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बहुसाराः स्वराशिस्थशनिज्ञकुजपन्नगाः ॥ ७५ ॥
बुध का सूक्ष्म वृक्ष, शुक्र का निष्कंटक वृक्ष चंद्र का कदली वृक्ष, सूर्य का पर्वत वृक्ष, बृहस्पति का नारियल आदि बड़े पत्तों वाले वृक्ष, शनि का ताल वृक्ष और राहु का सारवान् वृक्ष कहा गया है x x x x अपने राशिस्थ शनि, बुध मंगल और राहु के बहुसार वृक्ष कहे गये हैं ।
अन्तसारो हारस्थाने बहिरसारस्तु मित्रगे । स्वक्कन्दपुष्पछदनाः फलपक्व फलानि च ॥७६॥ मूलं लता च सूर्याद्याः स्वस्वक्षेत्रेषु ते तथा ।
शत्रुस्थानस्थ ग्रह अन्तःसार वृक्ष और मित्रस्थानस्थ बहिः सार वृक्ष को कहते हैं । अपनी अपनी राशि में स्थित सूर्य आदि ग्रह क्रमशः त्वक्, मूल, पुष्प, छाल, फल, पके फल, मूल, और लता इनके बोधक होते हैं।
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