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शानप्रदोपिका। शिला भानोबुधस्याहुः मृत्पात्रं चोषरं विदुः ॥६२॥ सितस्य मुक्तास्फटिके प्रवालं भूसुतस्य च । अयसं भानुपुत्रस्य मंत्रिणः स्यान्मनःशिला ॥६३॥ नीलं शनेश्च वैडूय्यं भृगोर्मरकतं विदुः । सूर्यकान्तो दिनेशस्य चंद्रकान्तो निशापतेः ॥६४॥
तत्तद्ग्रहवशान्नित्यं तत्तदाशिवशादपि । सूर्य को शिला, बुध का मृत्पात्र और उषर, शुक्र का मोतो और स्फटिक मणि, मंगल का मूंगा, शनि का लोहा, गुरु का मनःशिला, ( धातु विशेष ) शनि का नीलम और वैडूर्य, शुक का मरकत, सूर्य का सूर्यकान्त, चंद्र का चंद्रकांत, ये रत्न प्रश्न विचारते समय तत्तद्राशि और ग्रह पर से बताने चाहिये।
बलाबलविभागेन मिश्र मिश्रफलं भवेत् ॥६५)। नृराशौ नृखगैदृष्टे युक्ते वा मर्त्यभूषणम्।।
तत्तद्राशिवशादन्यत् तत्तद्रूपं विनिर्दिशेत् ॥६६॥ बली, निर्मल का विचार करके दृढ और अदृढ फल बताना चाहिये। यदि मिश्रबल हो तो फल भी मिश्र होता है। यदि नरराशि मनुष्यग्रह-द्वारा दृष्ट किंधा युक्त हो तो धातुसंबंधी प्रश्न में मानवभूषण बताना चाहिये। शेष राशि और ग्रह के स्वरूपवश xxxx।
इति धातुचिंता मूलचिन्ताविधौ मूलान्युच्यन्ते पूर्वशास्त्रतः । अब पूर्णशास्त्रानुसार मूलचिन्ता का वर्णन करते हैं ।
क्षुद्रसस्यानि भौमस्य सस्यानि बुधजीवयोः ॥६७॥ कक्षाणि ज्ञस्य भानोश्च वृक्षश्चन्द्रस्य वल्लरी। . गुरोरिक्षु गोञ्चिचा भूरुहाः परिकोर्तिताः ॥६॥
शनेर्दारूरगस्यापि तीक्ष्णकण्टकभूरुहाः ।। मङ्गल के छोटे सस्य, बुध और बृहस्पति के बड़े सस्य, x x x x सूर्य का वृक्ष, चन्द्रमा को लतायें, वृहस्पति की ईख, शुक्र की इमली, शनि का दारु, राहु के तीखे कांटेदार वृक्ष येवृक्ष कहे गये हैं।
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