Book Title: Epigraphia Indica Vol 02
Author(s): Jas Burgess
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 392
________________ GOVINDPUR STONE INSCRIPTION OF THE POET GANGADHARA. वियल्या [इ] तिभिरपचितो चन्द्रमौकि यस्ताभिर्थव शैवागममहितमहामन्त्रपूतान्तरा । एनः मोजगार विजगति विदितादाचया [व] त्वदोषादिदं धूमच्छलेनोव्वसरुचिरचिराचिर्त हो L. 12. 13. 14. 15. 16. 17. मवत्रिः ॥ - [13]. ता तं श्रयति [पितृभी] त्यामनो [निस्प (ष्प) भार्ष ] " घनन्तप्रमि[तिरमि]तां शक्तिमुन्मुखतम् । यस प्रथयति विभी: कर्तुरित्यहुतयी र्भ्रान्तिं लोकस्थितिषु भजते भूयसीन्धकीर्त्तिः ॥ – [14]. यस्य श्रीमन खरो [नयवशा] बोतिप्रयोगा[ख] लप्राम्भा[रा ] तुभयेरवि (म्य) तमतिर्व्यासाभिधानं व्यधात्। राजस्थानसरःसरोरुहमिति खेरं पुरः प्रातां मोतो नूतनकालिदास इति य: कालेषु वैतालिकेः ४ [10]. यः सम्मन्त्रिषु चा तुरीपरि [च] यैर्वाचस्पति: प्रस्तुत मनासर्णविरिचिरुथचरि [ते] रौचित्यचिन्तामथिः । सायप्रभवो गभरिमयताचिकी" भाषा प्रतिभाप्रभुः कविकलासन्दर्भगवर" ॥ [16]. स्प्रेरापारपरोपका - 2 रपरमः प्रेमोपचारोत्तर व्याहारैव्यंनतानुराग][र]चनाचातुर्वचयीगुरुः । धीरयः सुधियां सुधानिधिकलामीनः सदाराधन ध्याने जन्म नियं निनाय सुमन: खामीन मान्तेन यः ॥ - [17]. पक्षी तस्य मनोर तिनचारिवामु[द्रा]पदं [धो] डोरेमसचिवदेवमाथा" । [] [] मन्धतीय जन[तां] वन्या पतीनां ि श्रीमत्शवर“[आ?]वि[रं]कुर [थि] तुं सत्पुच्यवीजा [न्य] भूत् ॥ – [18]. [ना]पत्यं चिरमापतुर्यदुचितं तेनैव तौ दं Metre : Mandakranta. ॐ9 Metre of verses 15-19: Sardalavikridita. The akshara in brackets, in the original, is 26 Metre: Sragdharâ. This whole line and part of the following line are ex- can only be either or . Originally tremely indistinct in the rubbing. | but it has been altered to सचिव. The first akshara of this line, according to the rubbing, was engraved, 335 "I am not satisfied with the text of this line and of the next, which are quite blurred in the rubbings; but, with the rather exception of the bracketed letters the above seems to me to be the reading offered by the rubbings. In the place of the akshara Tanother letter was originally engraved, but it has been than ब. 44 Read The reading is clear here, but I would alter it to altered subsequently. + Read श्रौमच्य प

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