Book Title: Epigraphia Indica Vol 02
Author(s): Jas Burgess
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 481
________________ 18. 414 EPIGRAPHIA INDICA. जित्वा दुर्ग समय नरपतिमपित साधुवाद सम्ब क्स्तंभ योधापरियामरिवसपतगवेपिउनदीप [] भाक्रांता वृषपुंगवेन विलसनासा चतुर्भिः पदैः सम्यग्वीक्षणपासिता L.17. नवनवप्राप्तप्रकर्षादया 10 प्रासोष्टामरनचिकीव बहुमो रखाचन चि गौः शूर कीर्तिपयो धराशतमखे यस्मिनहीं मासति ॥ २७॥" कीर्तिधीरोदपूर बहुविधविरुदयोलसहीचिमाले वष्णः तेस्व सङ्गः सुखमुक्समर शेषमासाद्य शवोः । . दश्यते राजहंसा दिशि दिशिन ततो मानसे लीयमा ना: सीदत्पचा विलचाः स्फुरति न कमलोभेषितापचितेषां ॥ २८॥ पस्यासि: कालरात्रिः स्फुरति किल भवनमंडल वैरि--- -- [प्रोडासिवेश्म प्रभवदहिभयं भूतराजोरतापं ॥(0) पदोनोधी न चैषां भवति विघटते चक्रयो गो] नियोगा हरिर्जागति भीति: पतति निजपथो 19. नीजिझत: पंकपातः । २९॥ भ्रातः कल्पतरो किमाथ भगवन्हमाचल श्रृयता कतुं क्षेत्रमहीपतिः प्रयतते दानानि पुण्याशयः । वर्त[हे स्वा]करे यहांगणभुवि त्वं वत्तसे नित्वमः क्रीडार्थ यदि [वा] ददाति हि तदा वक्तुं कईष्टे जनः । ३.॥ प्रत्वं दानकथा मियो विजयते चिंतामविस्वर्गवी मुख्या20. नामपि दानमास्वविखसबाबाममुख प्रमोः । उनीलच्छरदंबु(बु)जामलदलखच्छायताधिस्फुर कोणस्थायुकमिवरिपरिषत्संपहिपहर्त्मनः ॥ ११॥ माद्यतंडचंडध्वनिभरविणलहीरवोधैर्य स्फूर्जत्कोदंडदंडप्रपतदिषुचयच्छवसैन्येप्यनन्थे । जन्ये प्राणकपणे गषयति न यणं विहिषां पु21. स्वराधिधन्यः क्षेत्रचितीयः प्रतिभटकपतिमाकराष्टिदृष्टिः ॥ १२॥" मूळलं तु जडीभक्च्छुतिपथं संशष्कितैकत्वचं मीलंतं च मुहमा शिथिलित यांत नवा मुखितं ॥0) • Read 'ख', and प्रदीपं. - Here foar akshards are broken away. • Matre : Sragdhari "Metre of verses 30 and 31: Bardalarikridita Metre : Bardalavikridita * Perhape altered to कष्टदृष्टिः Metre of vernes 28 and 29: Sragdbart. Metre: Sragdhara.

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