Book Title: Epigraphia Indica Vol 02
Author(s): Jas Burgess
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 483
________________ 416 L. 28. 29. 31. EPIGRAPHIA INDICA. ir [n] लंटितानां प्रतिनृपमहसां राशयस्ते किम विंध्य बंधुं समेतुं किमु समुपगताः साधु हेमाद्रिपादाः ॥ ४० ॥ ० रुजा 32. शेषपदां शकाधिपकरव्यग्रोभवज्जीवनां धोरोममुचदर्जुनीमिव गयाँ मायाविमुक्राशयः । धचाव समस्तलोकमहितः का डां परामागतो निःसच्ची [?] कतधराजयस्तेः पद्मालयासझनः ॥ ४१ ॥ * मत्तुल्या [न*]नु नाभवत्किल तुला पूर्वेति गर्व तुलामुष्य 30. लब्धा" नोद्दिजते वनीपकगणान्दत्वा (वा) न यत्कीर्त्तयेपावं प्राप्य मुदान्वितयतुला" वर्ष समारोपयेत् ॥ ४६ तस्य क्ष्मावलयं नयेन नयतः संतोषमायु[म]तः [] भूत: कारसुंदरी गुरुनतः पुत्रः सुभीमकलः । यतया भूति दारुणं वित[ते] यत्तत्कुमारः पुर सर्वज्ञोस्ति यतस्ततीचलभुवी नाथ चीणिपतेर्भुवं कृतयतो गर्वासहिष्योः पुरः । तस्यास्तस्य मुदानुदां विदधता धीरेण दत्तापरा मी मानादधिकाधिकीकृतविधियो विधाका ४२ ॥ संख्यातुं कथमीशते कविजना दानानि नानाविधान्यस्याकृष्टसमस्तराजवसुधावित्तस्य चित्तोत्रतेः । स्तु पित्रा कृतः ॥ ४४ ॥ प्रासादा बहुशः समुदतियुजः घोषीभुजा कारिता: राजमानकनकपस्कार कुंभयियः । नागेंद्रा नु शिरस् हाटकघटाना[धा]य लीलत्सुधान् यातुं नाकमिवोत्थिता मखभुजां पोषपानोत्सुकाः४५ ॥ अंगाः संप्राप्तभंगा: स्मृतघनविटयाः कामरूपा विरूषा वंगा गंगैकसंगा गतविरुदमदा जातसादा निषादा: । चीनाः संग्रामदोना: खलदसिधनुषो मोतिष्तष्का भूमीपृष्ठे गरि स्फुरति महिमनि आप 8 ॥ मूर्ड्स:"" मिंटूररेखाशतमखधनुषा राजमाना गभीरं कुर्वतः शब्दमुचे रदचिचपलाः खिन्धतन्या कचाभाः । मंग्रामग्रामयाता रि 60 Metre : Sragdhara. 61 Metre of verses 41-45 Earldlavikridita. 2 I should have expected here सम्मान, but am doubtful about the exact sense of the second half of this verse. This is quite clear in the impression, but the sense of the word is not apparent. 6 Here again the exact construction of the line is TOL clear. 6 Read तुला. 65 Metre of verses 46-51: Sragdhara liead मूर्खा

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