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एकदम उछल पडे । लेकिन इस तथ्यकी सुप्रतीति तो, पाठकोको ग्रन्थमे निर्दिष्ट भावोके वाच्यको समीचीनरूपसे अवगाहन करने पर ही होगी। ____ उल्लेखनीय है कि अनन्त करुणामूर्ति पू. गुरुदेवश्री कहानजी स्वामीकी वर्तमान व भावी मुमुक्षु समाज पर असीम निष्कारण करुणा रही है और इस करुणावृष्टिरूप देशना, तथा स्वयंके ज्ञान-ध्यान-साधनाका मुख्य केन्द्रस्थल श्री स्वर्णपुरी (सोनगढ़) रहनेसे यह क्षेत्र तीर्थधाम' मे परिणत हुआ है । परन्तु यह तीर्थधाम श्री निहालचन्द्रजी सोगानीके लिए तो 'ज्ञानकल्याणक' स्थल सिद्ध हुआ है । यही उन्होने अपने प्रथम दिनके संक्षिप्त-से परिचयमे ही श्री गुरुके श्री मुखसे मुखरित प्रथम भवच्छेदक देशना झीलकर, उसी दिन अनादिरूढ मिथ्यात्वको विध्वंस कर, मोक्षपथकी प्रथम सीढ़ीरूप स्वानुभूति प्रकट की । यही पूज्य गुरुदेवश्रीकी अप्रतिम बाह्य जिनशासन प्रभावनाके प्रताप व प्रसादसे श्री सोगानीजीके अन्तरमे निश्चय जिनशासनका उदय हुआ । यह एक ऐसी अनूठी, अनूपम गौरवमयी घटना है जो स्वर्णपुरी तीर्थधामके स्वर्णिम इतिहासके पत्रोपर रत्नाक्षरोमे टंकोत्कीर्ण है; जिसकी प्रभा स्वयं ही निरन्तर जगमगा रही है जिसे अनदेखा करना सम्भव नहीं । ___यथार्थत प्रस्तुत ग्रन्थके मूल तो पूज्य गुरुदेवश्री ही है, कारण कि उन्ही धर्मपिताश्रीकी भवान्तकारी देशनाके प्रसादसे ही श्री सोगानीजीका सद्धर्ममे नया जन्म हुआ है । अतः उनके पावन चरणारविन्दमे अत्यन्त भक्तिभावसे कोटि-कोटि वन्दन !
प्रस्तुत ग्रंथके प्रकाशन हेतु प्रकाश्य सामग्री सुलभ करानेके लिए हम श्री रमेशचन्द्र सोगानी, कलकत्ताके आभारी है। साथ ही जिन्होने इस ग्रन्थका मूल्य घटानेके लिए जो राशि प्रदान की है, ( जिनका विवरण अन्यत्र प्रकाशित है) के प्रति; तथा ग्रंथके सुन्दर मुद्रणकार्यके लिए श्री भीखाभाई सो. पटेल, भगवती मुद्रणालय, अहमदाबाद और टाइपसटिगके लिये शारदा मुद्रणालयके प्रति आभारी
अंतमे, पाठकगण मात्र अपने आत्मश्रेयके लक्ष्यसे प्रस्तुत ग्रन्थका वारंवार अध्ययन करे, ऐसे विनम्र अनुरोध के साथ
भावनगर, दि. २८-२-१९९३
ट्रस्टीगण, श्री वीतराग सत् साहित्य-प्रसारक ट्रस्ट