Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 13
________________ की आकांक्षा से व्यवहार में ला जीवन के साथ घुला-मिला देख सके और पा सके उसे दो भागों में विभाजित कर समझाया है - १. श्रावक धर्म और २, यति धर्म। इनमें प्रथम साधन है और दूसरा साध्य ।साधन के अभाव में साध्य की सिद्धि हो नहीं सकती, इसी से प्रथम श्रावक धर्म का स्थान आता है। प्रस्तुत ग्रन्थ “धर्मानन्द श्रावकाचार" में श्रावक धर्म का सुविस्तृत, सरल और स्पष्ट किया है। आबाल वृद्ध सर्व ही प्रबुद्ध हो सकते हैं। आचार्य परमेष्ठी श्री महावीर कीर्ति जी महाराज ने अपनी दूरदर्शिता से वर्तमान युग के चारित्र हीनता की स्थिति को ही ज्ञात करके सार्वजनिक जीवन को शिष्ट, प्रबुद्ध, विनयी, नम्र, भगवद्भक्त बनने का यह मार्ग दिखलाया है। इसमें श्रावकगृहस्थ का सर्वांगीप जीवन का विलग जीता जागता उतारा है। अत: प्रत्येक धर्मप्रेमी श्रावक-श्राविका इसकाआद्योपान्त अध्ययन कर मुक्तिपथ कोप्रशस्त करें। आशा है अवश्य लाभ उठायेंगे। आर्यिका प्रथम मणिनी विजयामति (२०)

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