Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 11
________________ महाराजजी से सातवीं प्रतिमा के व्रत लिए केवल चार माह के पश्चात् आचार्य विमलसागरजी ने इन्हें आगरा में चैत्र कृष्णा तृतीया विक्रम संवत् २०१९ में आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। नाम आर्यिका विजयामति माताजी हुआ। आपने ईसरी और बाराबंकी चातुर्मास के बाद बावनगजा बड़वानी चातुर्मास में आचार्य श्री आदिसागरजी महाराज अंकलीकर के परंपराचार्य महावीरकीर्ति जी महाराज के पास आचार्य श्री विमलसागरजी की आज्ञा से अध्ययन के लिए रहने लगे। गमक गुरु से गणिनि पद १९७२ में प्राप्त हुआ। अनेक ग्रन्थों का रहस्यपूर्ण अध्ययन किया। आप ज्ञानचिंतामणि, रत्नत्रय हृदय सम्राट, गणिनि कुञ्जर, युग प्रधान गणिनि आर्यिका विजयामति के नाम से प्रख्यात हैं। आपके द्वारा अनेक ग्रन्थों का प्रतिपादित, व्याख्यापित और अर्थ किये गये हैं। विशिष्ट ग्रन्थ इस प्रकार हैं - आत्म वैभव, आत्म चिंतन, नारी वैभव, तजो मान करो ध्यान, पुनर्मिलन, सच्चा कवच, महोपाल चरित्र, तमिल तीर्थ दर्पण, कुन्द-कुन्द शतक, प्रथमानुयोग दीपिका, अमृतवाणी, जिनदत्त चरित्र, श्रीपाल चरित्र, अहिंसा की विजय, शील की महिमा, आदि शिक्षा, दिव्य देशना, अंतिम दिव्य देशना, उद्बोधन, आचार्य महावीरकीर्ति का परिचय, विमल पताका, ओम प्रकाश कैसे बना सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य सन्मति सागर, नीति वाक्यामृत, जिनधर्म रहस्य का पद्यानुवाद, चतुर्विंशति स्तोत्र (हिन्दी अनुवाद), आदा समुच्चय आदि। रत्नत्रय के तेज से अपनी आत्मा का तेज आपके दर्शन करने वाले सहज ही जानते हैं। (१८)

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