Book Title: Dharmanand Shravakachar
Author(s): Mahavirkirti Acharya, Vijayamati Mata
Publisher: Sakal Digambar Jain Samaj Udaipur

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Page 10
________________ परिचय गणिनी आर्यिका विजयमतिजी आपका जन्म बैसाख शुक्ला १२ विक्रम स्वत् १९८५, १ मई सन् १९२८ कोकामाँ, जिला भरतपुर (राजस्थान) में हुआ। आपका जन्म नाम सरस्वती देवी था। पिता श्री संतोषीलालजी एवं माताश्री चिरौंजाबाई बड़जात्या था। पूर्व जन्मों के संस्कार से और इस जन्म के परिवार के वातावरण से धार्मिक कार्यों में समय व्यतीत करते थे, प्रमाद नहीं था, प्रसन्नता थी। विवाह की योग्यता होने पर १५ वर्ष की आयु में इनका लश्कर निवासी भगवान दासजी गंगवाल के साथ हुआ परन्तु २० दिन के वैवाहिक जीवन के पश्चात् दुर्दैववशात् वैधव्यता प्राप्त हुई। आचार्य सुधर्मसागरजी की आज्ञा प्राप्त हुई कि वह जैसा कहे वैसा ही करें। आपसे विचार करने पर चन्द्राबाई जैन बालाश्रम आरा (बिहार) में शिक्षा के लिए रखा गया। कक्षा ९ में प्रवेश हो गया अनुशासित रहकर बी.ए., बी.एड. की परीक्षाएँ उत्तीर्ण की।वहाँ रहकर आपने देश के स्वतन्त्रता के आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। आप ओजस्वी वक्ता थी। आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महाराज १९५६-५७ में आस आए । उस समय आपके मन में आर्यिका दीक्षा लेने के भाव आए। लेकिन आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज से उत्तर मिला कि तुम्हारी आर्यिका दीक्षा मुझ से नहीं होगी तथापि यह सत्य है कि तुम्हारा कल्याण मेरे पास ही होगा । तब उनसे शुद्रजल का त्याग व्रत लिया और साधुओं को आहार देना प्रारंभ कर दिया। ___ कुछ समय बाद आचार्य शिवसागरजी महाराज से ब्यावर में दूसरी प्रतिमा के व्रतधारण किये। पश्चात् सन् १९६२ में वीर निर्वाण के दिन परमपूज्य परमात्मा आचार्य आदिसागरजी महाराज अंकलीकर की परंपरा के आचार्य विमलसागरजी (१७)

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