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धर्मामृत (अनगार )
१३. पद्मनन्दि आचार्य - अन. टी. (पृ. ६७३ ) में सचेलता दूषण में श्रीपद्मनन्दिपादके नामसे पद्मनन्दि पंचविशतिकाका एक श्लोक उद्धृत है । पद्म पं. का भी उपयोग आशाधरजीने विशेष किया है । इनमें विक्रमकी बारहवीं शताब्दी पर्यन्तके कुछ प्रमुख ग्रन्थकार आते हैं । अब हम कुछ ग्रन्थोंके नामों का उल्लेख करेंगे जिनका निर्देश उनकी टीकाओंमें मिलता है -
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तत्वार्थ वृत्ति (पृ. १४ ), यशोधरचरित, पद्मचरित ( पू. ५० ), तत्त्वार्थश्लोक वार्तिक (पृ. ७३ ), स्वरचित ज्ञानदीपिका (९२, ९८), द्रव्यसंग्रह (११८), संन्यासविधि (१३३), आराधनाशास्त्र ( १४८, १६१), नीति (नीतिवाक्यामृत, १७१), सिद्धान्त (भ. आरा. १६७), आगम (त्रिलोकसार १९३), आगम ( गोमट्टसार २३३, २८९, २६४, २३५), प्रतिक्रमणशास्त्र ( २२८), नीत्यागम (नीतिवाक्यामृत २४५), मन्त्रमहोदधि (२५२), जातकर्म (२७६), महापुराण (२७४), भारत (२७४), रामायण (२७४), प्रवचनसारचूलिका (३२६), आचार टीका (मूलाचार टीका), (३३९, ३४४, ३५८, ३५९), टिप्पण (मूलाचार टी. ३५९), वार्तिक ( तत्त्वार्थवार्तिक ४३१), माघकाव्य (४६२), शतक ( ४६५), त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित (५२४), मूलाचार (५५४), चारित्रसार (५६४, ६६९), समयसार (५८६), समयसार टीका ( ५८८ ), क्रियाकाण्ड (६०५, ६५४), सिद्धयंक महाकाव्य (६३३), सिद्धान्त सूत्र ( षट्खण्डागम ६३८), संस्कृत क्रियाकाण्ड (६५३-६५४), प्राकृत क्रियाकाण्ड (६५४), ये तो मात्र अनगार धर्मामृतकी टीकामें निर्दिष्ट हैं । इनमें कुछ जैनेतर ग्रन्थ भी प्रतीत होते हैं जैसे संन्यास विधि, माघ काव्य, जातकर्म, भारत, रामायण |
मूलाराधनादर्पण नामक टीकामें दो उल्लेख बहुत महत्त्वपूर्ण हैं - एक ज्ञानार्णवका, दूसरे प्राकृत पंच संग्रहका । प्राकृत पंच संग्रह प्राचीन है किन्तु इससे पहले उसके इस नामका निर्देश अन्य किसी भी ग्रन्थ में नहीं देखा । नामोल्लेख किये बिना जो उद्धरण दिये गये हैं उनसे सम्बद्ध ग्रन्थ भी अनेक हैं यथा - इष्टोपदेश, समाधितन्त्र, तत्त्वानुशासन, पंचास्तिकाय, आप्तस्वरूप, वरांगचरित, चन्द्रप्रभचरित, समयसारकलश, नयचक्र, गोम्मटसार कर्मकाण्ड, योगशास्त्र, सन्मतिसूत्र, भावसंग्रह, प्रमाणपरीक्षा, अनर्घराघव नाटक, परमात्मप्रकाश, स्वयम्भू स्तोत्र, तत्त्वार्थसार, समवसरणस्तोत्र, ब्रह्मपुराण, वादन्याय आदि । अनेक श्लोकों और गाथाओंका तो पता ही नहीं चलता कि किस ग्रन्थसे ली गयी हैं । उनकी संख्या बहुत अधिक है । उक्त जैन ग्रन्थकारों और ग्रन्थोंके सिवाय कुछ जैनेतर ग्रन्थकारोंका भी निर्देश मिलता है, यथा
१. भद्र रुद्रट - अन. टी. ( पृ. १४, २५५ ) में भद्र रुद्रट तथा उनके काव्यालंकारका निर्देश है । साहित्य शास्त्र में रुद्रट और उनके काव्यालंकारका विशेष स्थान है । इसीपर आशाधरजी ने अपनी टीका रची थी।
२. वाग्भट - वाग्भटका अष्टांगहृदय नामक वैद्यक ग्रन्थ आयुर्वेदका प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है । इसमें १२० अध्याय हैं । इसपर आशाधरजीने टीका रची थी । धर्मामृतकी टीकामें इसके अनेक उद्धरण पाये जाते हैं और यदाह वाग्भट ( २३५ ) करके उनका नामोल्लेख भी है ।
३. वात्स्यायन - वात्स्यायनका कामसूत्र अति प्रसिद्ध है । पृ. २३८ में इनके नामके साथ एक श्लोक उद्धृत है जिसमें योनिमें सूक्ष्म जीव बतलाये हैं ।
४. मनु- मनु महाराजकी मनुस्मृति अति प्रसिद्ध ग्रन्थ है । पू. २७४ आदिमें मनुस्मृतिके अनेक श्लोक उद्धृत हैं ।
५. व्यास - महाभारत के रचयिता व्यास ऋषि प्रसिद्ध हैं । पृ. ३८९ में इनके नामके साथ महाभारतसे एक श्लोक उद्धृत हैं। इस प्रकार आशाघरजीने अनेक ग्रन्थकारों और ग्रन्थोंका निर्देश किया है ।
ग्रन्थ और ग्रन्थकारके सम्बन्ध में आवश्यक प्रकाश डालनेके पश्चात् इसके अनुवादके सम्बन्धमें भी दो शब्द लिखना आवश्यक है । स्व. डॉ. ए. एन. उपाध्येने धर्मामृतके प्रकाशनकी एक योजना बनायी थी । उसीके अनुसार मैंने इसके सम्पादन भारको स्वीकार किया था । योजनामें प्रथम प्रत्येक श्लोकका
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