Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ और दिन में सबकुछ समाप्त हो गया । तुम चाहे जितनी व्यवस्थाएँ जमाओ, कितना भी संग्रह करो, लेकिन अगले कल के बारे में कुछ तय नहीं कहा जा सकता। पुरानी बात है। अपनी यात्रा के दौरान हम क्षत्रियकुंड ग्राम पहुँचे । इतिहासवेत्ताओं ने घोषित किया कि यह वही स्थान है जहाँ सिद्धार्थ ने शासन किया था और यहीं भगवान महावीर का भी जन्म हुआ था। लेकिन आज वहाँ खंडहरों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की सभ्यता I दो हो चुकी है | क्या था और क्या हो गया और हम यह भी नहीं जानते कि आगे क्या होगा ? यह जग तो एक धर्मशाला है, सराय है । आज तुम हो, कल तुम्हारी जगह दूसरा होगा । यहाँ सब अध्रुव और अशाश्वत है। यहाँ तो जन्म दुःख है और जीवन भी दुःख है, लेकिन हमने इस दुःख को ही सुख मान लिया है। किसी सुखी दिखाई देने वाले व्यक्ति के अन्तर्मन में झाँकें तो पता चलेगा वहाँ दुःख की ही परछाइयाँ डोल रही हैं । एक दिन की बात है, मैं आहारचर्या के लिए जा रहा था कि रास्ते में शवयात्रा दिखाई दी। साथ में चलने वाले 'रामनाम सत्य है, सत्य बोलो...' कहते हुए जा रहे थे। वहीं सड़क के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे । वे भी उसी सुर में गुनगुनाने लगे। जब शवयात्रा आगे चली गई तो मैंने सुना कि वे बच्चे कह रहे थे, 'राम नाम सत है, मुर्दा बड़ा मस्त है ।' मैं चौंक गया, ये बच्चे जीवन का सत्य दोहरा रहे थे । उन्होंने उस व्यक्ति को जीवन में सदा उदास और गमगीन ही देखा था । हर चीज के लिए व्याकुल और संतप्त ! और आज अत्यंत शांत और मस्त था । भगवान कहते हैं कि यहाँ सबकुछ अध्रुव है। जैसे पानी पर खींची हुई लकीर की कोई उम्र नहीं होती वैसा ही मनुष्य - - जीवन भी है। इधर जन्म लेते हो, उधर मृत्यु दबे पाँव आ जाती है। जीवन शुरू होता है, आगे बढ़ता है, पीछे की लकीर मिटनी शुरू हो जाती है। बचपन तेरा सूर्य सुबह का और दोपहर समझो जवानी । साँझ ज्यों ढलता जर्जर बुढ़ापा रात को तेरी खतम कहानी । तुम महल तो आलीशान बनाते हो, लेकिन उसके पहले ही तुम्हारा जीवन खंडहर हो जाता है। तुम्हारे सुख दुःख में तब्दील हो जाते हैं। भगवान धर्म, आखिर क्या है ? 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 162