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मैंने अपने जीवन में ऐसे व्यक्तियों को देखा है जो पुत्र-जन्म पर थाली बजवाते हैं, लेकिन वही पुत्र जब जवान हो जाता है, तो दुःख के भँवर में गोते खाते नजर आते हैं। उनका वह आह्लाद उस समय विषाद में बदल जाता है, जब पुत्र उन पर हाथ उठाने से भी बाज नहीं आता, अपशब्दों का प्रयोग करता है। उस पर भी मजेदारी यह कि उस स्थिति से बाहर भी नहीं निकलना चाहते कि नहीं, यह तो नहीं हो सकता। घर कैसे छोड़ें ? भगवान कहते हैं, यही मूर्छा है। ____ आज के सूत्रों में हम यही देखेंगे कि भगवान कह रहे हैं कि वे कौन-सी स्थितियाँ हैं, जहाँ जन्म भी दुःख है; बचपन, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, बुढ़ापा
और मृत्यु भी दुःख है। इस दुःख का कारण क्या है और इसका निवारण, मुक्त होने का उपाय क्या है ? सूत्र है
अधुवे असासयम्मि संसारम्मि दुक्ख पउराए। किं नाम होज्ज तं कम्मयं, जेणाऽहं दुग्गइं न गच्छेज्जा॥ अध्रुव, अशाश्वत और दुःख-बहुल संसार में मानव की यही सबसे बड़ी कमजोरी है कि वह जन्म लेने के पश्चात् असार को ही सार समझने लगता है। जैसे धान के छिलके असार हैं, वैसे ही संसार असार है। भगवान ने कहा अध्रुव यानी यहाँ पर ध्रौव्य कुछ भी नहीं है। तुमने हर चीज को ध्रुव मान लिया है। यहाँ तक कि तुम अपने नाम को भी ध्रुव समझते हो, लेकिन अक्षरों की बदलाहट से नाम भी और अर्थ भी बदल जाते हैं। उत्पाद और व्यय सृष्टि का नियम है। यहाँ ध्रुव केवल चेतन तत्त्व है। नाम किसी का शाश्वत नहीं हो सकता। आज तुम्हारी उम्र चालीस वर्ष है। क्या बताओगे कि पचास वर्ष पूर्व तुम क्या थे ? क्या वही जो आज हो? पचास वर्ष बाद तुम क्या होओगे ? कितना ध्रौव्य और कितनी शाश्वतता ! सब क्षणिक है। सब परिवर्तनशील है। ___ तुम्हें मालूम होना चाहिए कि जिस स्थान पर आज तुम बैठे हो, संभव है वह कभी कब्रिस्तान या श्मशान रहा हो। आज कब्रों पर इमारतें निर्मित हो गई हैं। इन्हें देखकर तुम्हें जग शाश्वत मालूम होता है। क्या ध्रुव और कैसी शाश्वतता ! रात में तुम पड़ोसियों से गप्पें लगाकर सोए थे और सुबह तुम्हारे ही पुत्र पड़ोसियों को सूचना देते हैं कि तुम दुनिया में नहीं रहे। वह आश्चर्य में डूब जाता है कि रात में तो हमने बातचीत की थी, और अभी.....? रात मनुष्य दुःखी क्यों है ?
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