________________
-
-
_मनुष्य दुःखी क्यों है ?
एक दिन एक संत किसी सम्पन्न व्यक्ति के यहाँ पहुँचा। उस सेठ के चेहरे
पर मायूसी छाई हुई थी। संत ने संपन्नता के साथ उदासी देखी तो उससे रहा न गया। वह इस उदासी का कारण पूछ बैठा, 'क्या किसी गहरे दुःख से ग्रसित हो या व्यापार-व्यवसाय में कुछ नुकसान हो गया है ?' व्यक्ति ने निःसांस छोड़ी और कहने लगा, 'संतप्रवर, मैं नगर का सबसे सम्पन्न व्यक्ति हूँ और व्यापार-व्यवसाय भी अच्छा चल रहा है। मैंने लेखा-जोखा निकाला कि मेरे पास इतना कुछ है कि छः-छः पीढ़ियाँ आराम से जीवन-यापन कर सकती हैं।' संत ने साश्चर्य पूछा, 'फिर चिन्ता किस बात की है ?' सम्पन्न व्यक्ति का जवाब था, 'मैं यही सोच कर चिंतित हूँ कि मेरी सातवीं पीढ़ी क्या खाएगी?'
संत ठहाके लगाकर हँस पड़ा। व्यक्ति संत की हँसी को सुनकर चौंका। उसने हँसी का कारण जानना चाहा, तो संत ने कहा, 'हँसी आई तुम्हारी नादानी पर। सातवीं पीढ़ी, जो अभी है ही नहीं, उसके लिए वर्तमान को चिंता में गालना, यही है तुम्हारे दुःखी होने का कारण। तुम वर्तमान की सुध लो। तुम्हारी यह सुधी ही तुम्हें सुखमय करेगी।' जीवन की यह दृष्टि ही उसे सुखमय कर गई। मनुष्य दुःखी क्यों है ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org