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प्रवचन-४९ अपने सारे सांसारिक सुखों को ठुकरा सके, परन्तु अभिमान का त्याग नहीं कर सके । आन्तरिक शत्रु को नहीं पहचान सके।
जब उनकी दो बहनें - साध्वीजी ब्राह्मी और सुन्दरी - बाहुबली के पास आई और कहा :
‘वीरा मोरा! गज थकी उतरो
गज चढ़े केवल न होय रे...' ब्राह्मी और सुन्दरी ने भगवान ऋषभदेव से जानकारी प्राप्त की थी कि बाहुबली कहाँ है और उनको केवलज्ञान क्यों नहीं हो रहा है। उन्होंने आकर बाहुबली को सुनाया : 'हमारे भैया! अब तो हाथी पर से नीचे उतरो....हाथी पर बैठे-बैठे केवलज्ञान नहीं होगा।' ___ बाहुबली, ब्राह्मी-सुन्दरी की बात सुनकर सोचने लगे कि 'मैं तो जमीन पर खड़ा हूँ और ये मेरी बहनें कहती हैं कि, हाथी पर से नीचे उतरो....हाथी पर बैठे-बैठे केवलज्ञान नहीं होगा।' सोचते-सोचते उनको खयाल आ गया कि 'ओह! मैं मान-अभिमान के हाथी पर बैठा हूँ| सच बात है मेरी बहनों की....अभिमानी को केवलज्ञान नहीं हो सकता है। मैं अभी भगवान के चरणों में जाता हूँ और मेरे ९८ भाई-श्रमणों को वन्दना करूँगा।' बस, ज्यों ही बाहुबली ने भगवान के पास जाने के लिए कदम उठाया, उसी वक्त उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई। बड़प्पन का अहंकार-अभिमान दूर हुआ कि कैवल्य का दीपक झगमगाने लगा! अभिमान बहरूपिया है :
अभिमान के अनेक रूप होते हैं। धर्मग्रंथों में वे रूप 'आठ मद' के नाम से प्रसिद्ध हैं। 'प्रशमरति' ग्रन्थ में वे मद इस प्रकार बताये गये हैं :
'जाति-कुल-रूप-बल-लाभ-बुद्धिवाल्लभ्यक-श्रुतमदान्धाः।
क्लीबाः परत्र चेह च हितमप्यर्थं न पश्यन्ति ।।' __ जाति का, कुल का, रूप का, बल का, किसी भी चीज की प्राप्ति का, बुद्धि का, ज्ञान का मद मनुष्य को अन्धा बना देता है। मदान्ध मनुष्य अपने इहलौकिक और पारलौकिक हित को देख नहीं सकता है। हितकारी को अहितकारी और अहितकारी को हितकारी देखता है। इससे वह भटक जाता है। जिसको जिस बात का अभिमान होता है, उसको, वह बात जिसमें नहीं
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