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[ १३ ]
मंत्र — ॐ ह्रीं अर्ह परमात्मने, अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये, जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय, भगवते श्री बीर जिनेन्द्राय, [ श्रीमज्जिनेन्द्राय ] कुसुमाञ्जलिं यजामहे स्वाहा ||
उपरोक्त मन्त्र बोलकर प्रभु के मस्तक [ चोटी ] पर चन्दन केशर की टीको लगाना । फिर हाथ मे चामर लेकर सडा रहे ।
॥ वस्तु छन्दः ॥
मनरङ्ग ।
सयल जिनवर, सयल जिनवर - नमिय कल्लाणक विहि सठविय - करिय सुधम्म सुपवित्त सुन्दर || सय इक सत्तरि वित्थकर - इक समय विरहन्ति महीयल । चवण समय इगवीस जिण-जन्म भत्तिय भावे पूजिया करो सघ
समय इगवीस | सुजगीस ॥ ६ ॥
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॥ दाल १ ॥
तर्ज- इक दिन अचिरा हुलरावतीए
भवतीजे समकित गुणरम्या - जिण भक्ति प्रमुख गुण परिणम्या || तजी इन्द्रिय सुख आसशना - करी थानक वोसनी सेवना ॥१॥ अति राग प्रशस्त प्रभावता - मन भावना एहवी भावता ॥ सवि जीव करूँ शासन रसीइसी भाव दया मन उल्लसी ॥ २ ॥ लही परिणाम