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कुसुमांजलि मेलो नेमि जिणन्डा । तोरा चरण कमल चौबीस, पूजो रे चोवीस, सौभागी चौवीस वैरागी चोवीस जिणन्दा | कुसुमाजलि मेलो नेमि जिणन्दा |
॥ मंत्र ॥
ॐ ही अर्ह परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये, जन्म जरा मृत्यु निवारणाय, श्री नेमि जिनेन्द्राय
- ( श्री मज्जिनेन्द्राय ) कुसुमाज लियजामहे स्वाहा ||
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यह मंत्र पढ़कर प्रभु के चरणों मे कुसुमाजलि तीसरी वार चढ़ावें । तथा चदन- केशर से प्रभु की कलाइयों पर टीकी लगायें । फिर कुसुमाञ्जलि हाथों मे लेकर सड़ा रहे तथा मंत्र पढ़ें । मत्र — ॐ नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः ॥ ॥ दोहा ॥
जे सिद्धा सिज्झन्ति जे, सिज्झिसति अणत || जसु आलम्बन ठवियमन, सो सेवो अरिहंत ||४||
|| ढाल || शिव सुख कारण जेह निकाले - सम परिणामें जगत निहाले || उत्तम साधन मार्ग दिसालें - इन्द्रादिक जसु चरण पसाले ||
कुसुमाञ्जलि मेलो पार्श्व जिणन्दा । तोरा चरणकमल