Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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पूर्णपरिवर्तनवादी विद्वानों के समक्ष रखा गया। विद्वानों ने भी इसमें गहरी रुचि दिखलायी। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय इस पक्ष में थे कि भारतीयदर्शन को धर्म से मुक्त होना चाहिए। यदि वह धर्म से मुक्त हो जाता है तो उसकी ऐकान्तिकता का आग्रह छूट जाएगा। उसे विज्ञान का भी पिछलग्गू नहीं होना चाहिए। प्रत्युत उसे धर्म तथा विज्ञान के मध्य में स्थान निश्चित करना है। इस प्रकार निरपेक्ष चिन्तन की दिशा में पहला क्रम होगा भारतीय दर्शनों का विषयानुरोधी नया वर्गीकरण प्रस्तुत करना। इस नये वर्गीकरण से दर्शनों के विकासक्रम का आकलन किया जा सकता है
किन्तु कतिपय परम्परावादी विद्वान इस विषयानुरोधी वर्गीकरण के विभाजन को अनुचित बताते हुए कहते है कि भारतीय दर्शनों में प्रतिपाद्य विषयों की बहुलता है उन दर्शनों में कुछ ऐसे भी विषय हैं जो सभी दर्शनों में समान हैं, यदि विषयपरक विभाजन किया जाएगा तो उन उन दर्शनों में वर्णित ये विषय जो अन्यान्य रूप से अनूबद्ध हैं की समानता के आधार पर छूट जाने का भय उपस्थित होगा (पं० वदरीनाथ शुक्ल)। अतः विषयपरक वर्गीकरण का भारतीय दर्शनों का औचित्य नहीं लगता। एक अन्य परम्परागत विद्वान ने कहा- परम्परागत दर्शन पर्याप्त एवं पूर्ण है उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन अपेक्षित नहीं है (पं० रघुनाथ शर्मा)। इस प्रकार घोर परम्परावादी एवं घोर नवीन वर्गीकरणवादी दो प्रकार के विद्वान् इस गोष्ठी में उपस्थित हए। प्रो. राजाराम शास्त्री जेसे विद्वान् परम्परागत तथा विषयगत दोनों ही प्रकार के वर्गीकरण के पक्षपाती थे। उन्होंने कहा-दर्शन के दोनों प्रकार के वर्गीकरण हो सकते हैं साम्प्रदायिक तथा विषयगत। पर यदि सम्प्रदायगत विषयवस्तु को निकाल कर अन्य के साथ जोड़ दिया जाय तथा उसको अध्ययनाध्यापन का विषय बनाया जाय तो उससे समग्रता की जगह स्वरूपता आयेगी। क्योंकि जैसी चुनौती विद्यार्थी को मिलती है उसको ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम बनता है। पर प्रत्येक शास्त्र की समस्याओं के समाधान के लिए अलग अलग दर्शन बनते हैं इसमें दर्शन का मात्र यह काम है कि वह देखे कि जो दार्शनिक परिप्रेक्ष समस्याओं के समाधान के लिए रखा गया है, वह दर्शन की दृष्टि से उचित है या नहीं।
सामाजिक समस्याओं के समाधान का तत्त्व यद्यपि दर्शन शास्त्रों में मिलता है फिर भी प्लेटो, अरस्तू की भांति भारतीय चिन्तन में समाधान प्रस्तुत नहीं है। अतः
आज के दर्शन को सामाजिक समस्याओं का भी दर्शन प्रस्तुत करना चाहिए (प्रो. रामशंकर मिश्र)। एतदर्थ नयावर्गीकरण होना चाहिए।
प्रस्तावित वर्गीकरण की अपेक्षा दर्शनों के प्रतिपाद्य विषयों के विकासक्रम को समझाकर यदि विभाजन किया जाय तो इससे तत्तद् दर्शनों के आनुषंगिक विषयों में
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