Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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( च ) है। कोठारी आयोग ने इसे सभी स्तरों पर उपयोगी एवं श्रेयस्कर माना है। (सुभाषचंद तिवारी)।
आज के समाज में धर्म एवं परम्परा का नैतिक मूल्य एवं महत्त्व घटता जा रहा है और निरन्तर तर्क संगतता, औपचारिकता, कर्मचारीतन्त्र तथा विधिविधानों का दायरा बढ़ रहा है तो समाज को नैतिक दिशा-निर्देश कहां से मिलेगा? गांधीजी हर परिस्थिति में नैतिक मूल्यों की सर्वोच्चता को कायम रखना चाहते थे। वह नैतिक मूल्यों तथा राजनीतिक शास्त्रों के द्वन्द्व में नैतिक मूल्यों की अप्रतिहत श्रेष्ठता की स्थापना करना चाहते थे। वह राजनीतिक जीवन तथा संस्थाओं का अध्यात्मीकरण करना चाहते थे। वह कहते थे कि यदि राजनीति को धर्म से अलग कर दिया जाय तो वह उसी तरह त्याज्य है जैसे मृत शरीर (श्रीरमेशचन्द तिवारी)। पर वह धर्म को साम्प्रदाय विशेष के अर्थ में न लेकर आन्तरिक आध्यात्मिक तत्त्वों को धर्म मानते थे। परम्परावादी विश्वविद्यालयों में धर्म रूढ़ अर्थ में प्रयुक्त होता है पर गाँधीजी की दृष्टि में सार्वभौम धर्मो का नाम ही धर्म है। मनुष्य का यह दायित्व है कि वह सार्वभौम धर्मों का पालन करते हुए अपने अपने दायित्वों का निर्वाह करे (पं. बदरीनाथशुक्ल)।
उत्तरदायित्व का भार यदि परम्परावादी समाज को लेना होता है तो परम्परागतशास्त्रों की नयी व्याख्या करनी पड़ती है। इस सन्दर्भ में कुछ परम्परागत. विद्वान् परम्परागत शास्त्रों के विषयवस्तुओं की व्याख्या नये सन्दर्भ में करने की कोशिश करते हैं तथा कुछ ज्यों की त्यों परिस्थिति बनाये रखने के पक्ष में होते हैं। ऐसी स्थिति में उनका तर्क यह होता है कि शास्त्रीय सिद्धान्त हमेशा एक धारा के तथा सन्दर्भो के क्रम में लगते हैं जो तत्कालीन थे । पर आज के सन्दर्भ भिन्न हैं यदि हम साम्य के आधार पर उनकी व्याख्या बदले तो सम्पूर्ण शास्त्रीय सन्दर्भ बदल जायेगा और सन्दर्भ रहित व्यवस्था में सांकर्यदोष की संभावना है। इसी आधार शिला पर दर्शनों का नया वर्गीकरण नामक संगोष्ठी प्रारम्भ हुई। जिसमें विषयगत आधार पर दर्शनों के नये वर्गीकरण की बात को मूलपरम्परागत, सुधारवादी परम्परागत तथा
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