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दो शब्द जैन-दर्शन ९ तत्त्व मानता है। 'पड्दर्शन-समुच्चय' (श्लो०४७) मे आचार्य हरिभद्र सूरि ने उनकी गणना इस प्रकार करायी है--
जीवाजीवी १-२ तथा पुण्यं ३, पापाश्रव ४-५ संघरो ६। बंधो ७ विनिर्जरा ८ मोक्षो ६ नवतत्त्वानि तन्मते ॥
-१ जीव, २ अजीव, ३ पुण्य, ४ पाप, ५ आश्रव, ६ संवर, __७ बंध, ८ निर्जरा और ९ मोक्ष ये ९ तत्त्व है।
उत्तराध्ययन (अ० २८, गा० १४) मे उन्हें 'तथ्य' कहा गया है और ठाणांगसूत्र (सूत्र ६६५) मे इनकी संज्ञा 'सद्भाव' दी गयी है।
प्रस्तुत ग्रन्थ इन ९ में मुख्यतः जीव से सम्बद्ध है और उत्तराध्ययन (अ० ३६, गा० २५८) मे वर्णित अल्प संसारी जीव के विपय को लेकर आत्मा, कर्म और धर्म-सम्बन्धी ४६ व्याख्यान इसमे संगृहीत हैं। ___ भगवान् महावीर के प्रथम गणधर इन्द्रभूति और तृतीय गणधर वायुभूति को शासन मे आने से पूर्व 'जीव' के सम्बन्ध मे
और 'जो जीव है वही शरीर के सम्बन्ध मे शंका थी। अपने पांडित्य और अपनी ख्याति को ध्यान मे रखकर वे किसी के सम्मुख अपने अन्तस् की शंका व्यक्त नहीं करते थे । अतः उनकी शंकाओ का समाधान भी नहीं होता था। पर, जब वे भगवान् के सम्मुख समवसरण मे गये तो भगवान् ने उनके नाम और