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अतुल-सुख-सिद्धि हेतोर्,
धर्मयशश्चरण-रक्षणार्थं च । इह-पर-लोक-हितार्थं, कलयत चित्ते ऽपि मा चौर्यम् ॥
- आचार्य शुभचन्द्र हे भव्य आत्माओ ! यदि तुम अनुपम आत्म-सुख प्राप्त करना चाहते हो, धर्म, यश, एवं चरित्र-सम्पत्ति की रक्षा करना चाहते हो, और लोक तथा पर-लोक सम्बन्धी अपना हित-साधन करना चाहते हो, तो कभी भूलकर मन में भी चोरी को प्रश्रय-स्थान न दो । चोरी एक महापातक है।
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