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प्रवचन करते हुए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर विस्तार के साथ प्रवचन दिए थे-जिनका प्रकाशन सन्मति ज्ञान पीठ आगरा में - अहिंसा दर्शन, सत्य दर्शन, अस्तेय दर्शन, ब्रह्मचर्य दर्शन और अपरिग्रह दर्शन के रूप में किया गया था। अस्तेय दर्शन उसी श्रृंखला की तृतीय कड़ी है। उसका यह द्वितीय संस्करण है, परिवर्तित, परिवर्धित एवं संशोधित १० सितम्बर, १९९४
-विजय मुनि शास्त्री जैन भवन मोती कटरा, आगरा।
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