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वह स्रष्टा है तो तुम कुछ बनाओ।
जब कोई स्त्री मां बन जाती है तो उसके चेहरे पर जो आनंद की झलक है वह सृजन की झलक है-एक बच्चे का जन्म हुआ।
देखा तुमने, स्त्रियां और कुछ निर्माण नहीं करतीं! कारण इतना ही है कि वे जीवन को निर्माण करने की क्षमता रखती हैं, और कुछ निर्माण करने की आकांक्षा नहीं रह जाती। जब एक जीवित बच्चा पैदा हो सकता है, तो कौन पत्थर की मूर्ति बनाएगा!
इसलिए कोई बड़ी मूर्तिकार स्त्री कभी हुई नहीं कोई बड़ी संगीतज्ञ स्त्री कभी हुई नहीं। कोई बड़ी कवि स्त्री कभी हुई नहीं| मनोवैज्ञानिक तो कहते हैं कि पुरुष को सृजन की इतनी आकांक्षा पैदा होती है, वह स्त्री से ईर्ष्या के कारण। स्त्री तो बच्चों को जन्म दे देती है; पुरुष के पास जन्म देने को कुछ भी नहीं छूछ के छंछ, बांझ!
तो बड़ी बेचैनी है पुरुष के भीतर, वह भी कुछ निर्माण करे! इसलिए पुरुषों ने धर्म निर्माण किए-जैन धर्म, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म; बड़ी मूर्तियां बनाईं-अजंता, एलोरा, खजुराहो, बड़े चर्च, बड़े मंदिर बनाए, बड़े काव्य लिखे?: कालीदास, शेक्सपीयर, मिलटन! स्त्री उस अनुभव को, उस पुलक को उपलब्ध हो जाती है, जब बच्चे का जन्म होता है। तब इस जन्मे बच्चे को, अपने ही भीतर के शून्य से आए हुए जीवन को देख कर पुलकित हो जाती है।
इसलिए जब तक स्त्री का बच्चा न पैदा हो, तब तक कुछ कमी रहती है, चेहरे पर कुछ भाव शून्य रहता है। स्त्री अपने परम सौंदर्य को उपलब्ध होती है मां बन कर, क्योंकि मा बन कर वह स्रष्टा हो जाती है। थोड़ा-सा सृष्टि का रस उस पर भी बरस जाता है। थोड़ी बदली उस पर भी बरखा कर जाती है। पुरुष भी जब कुछ बना लेता है तो प्रमुदित होता, आह्लादित होता, आनंदित होता।
कहते हैं, आर्कमिडीज ने जब पहली दफा कोई गणित का सिद्धात खोज लिया तो वह टब में लेटा हुआ था। लेटे-लेटे उसी आराम में उसे सिद्धात समझ में आया, अनुभूति हुई एक द्वार खुला! वह इतना मस्त हो गया, भागा निकल कर! क्योंकि सम्राट ने उससे कहा था यह सिद्धात खोज लेने को। वह भूल ही गया कि नंगा है। राह में भीड़ इकट्ठी हो गई और वह चिल्ला रहा है :'यूरेका, यूरेका! पा लिया!' लोगों ने पूछा : पागल हो गए हो? नंगे हो!' तब उसे होश आया, भागा घर में। उसने कहा, यह तो मुझे खयाल ही न रहा।
सृजन का आनंद : पा लिया! उस घड़ी आदमी वैसा ही है जैसा परमात्मा-स्व थोड़ी-सी किरण उतरती है!
वैज्ञानिक हो, कवि हो, चित्रकार, मूर्तिकार-जब भी तुम कुछ सृजन कर लेते हो तो एक किरण उतरती है। यह तो एक रास्ता है। इसको मैं काव्य का रास्ता कहता, कला का रास्ता -कहता। परमात्मा के पास जाने का सबसे सुगम रास्ता है कला| मगर पूरा नहीं है यह रास्ता। इससे सिर्फ किरणें हाथ में आती हैं, सूरज कभी हाथ में नहीं आता।
फिर दूसरा रास्ता है ऋषि का। ऋषि परमात्मा को जानता है साक्षी हो कर, कवि जानता है