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का खयाल है, परमात्मा दृश्य बन सकेगा।
यह सूत्र स्मरण रखना :'सबको जानने वाला, सबको बनाने वाला ईश्वर है। यहां दूसरा कोई नहीं है। ऐसा जो निश्चयपूर्वक जानता है, वह पुरुष शांत है। उसकी सब आशाएं जड़ से नष्ट हो गई हैं और वह कहीं भी आसक्त नहीं होता है।'
तो फिर ईश्वर को जानने का ढंग क्या है? अगर ईश्वर को दृश्य की तरह नहीं जाना जा सकता तो फिर उपाय क्या है? उपाय है कि तुम द्रष्टा बनो। क्योंकि द्रष्टा ईश्वर का स्वभाव है। जैसे-जैसे तुम द्रष्टा बने कि तुम सरकने लगे ईश्वर के करीब
दुनिया में दो ही ढंग हैं ईश्वर के साथ थोड़ा-सा संबंध बनाने के। एक तो है कवि का ढंग और एक है ऋषि का ढंग। कवि का ढंग है कि वह कुछ सृजन करता है, कविता बनाता है, शून्य से लाता है शब्द को। चित्रकार, मूर्तिकार, संगीतकार, नर्तक-निर्माण करते कुछ। अनगढ़ पत्थर को गढ़ता मूर्तिकार; जहां कोई रूप न था, वहां रूप का निर्माण करता। कल तक पत्थर था राह के किनारे पड़ा, आज अचानक मूर्ति हो गई। उस पत्थर के चरणों पर फूल चढ़ने लगे, कुछ निर्माण कर दिया!
कहते हैं, माइकल एंजिलो निकल रहा था एक रास्ते से और उसने किनारे पर पड़ा हुआ एक पत्थर देखा। पास ही पत्थर वाले की दूकान थी। उसने पूछा, यह पत्थर कई सालों से पड़ा देखता हूं। उसने कहा, इसका कोई खरीदार नहीं, बहुत अनगढ़ है। माइकल एंजिलो ने कहा, मैं इसे खरीद लेता हूं। उस पत्थर से माइकल एंजिलो ने ईसा की बड़ी सुंदर प्रतिमा निकाली। जब प्रतिमा बन गई तो वह पत्थर की दूकान वाला भी देखने आया। उसने कहा, चमत्कार है। क्योंकि यह पत्थर मैं भी नहीं मानता था कि बिकेगा। यह तुमने क्या किया, कैसा जादू!
माइकल एंजिलो ने कहा: मैंने कुछ किया नहीं। मैं जब निकल रहा था तो इस पत्थर में छिपे हुए जीसस ने मुझे पुकारा और कहा मुझे छुडाओ! मुझे मुक्त करो तुम ही कर सकोगे। बंधे-बंधे बहुत दिन हो गए इस पत्थर से।' तो जो व्यर्थ हिस्सा था, वह मैंने अलग कर दिया, मैंने कुछ किया नहीं। लेकिन एक अनूठी कृति निर्मित हो गई-अनगढ पत्थर से!
जब माइकल एंजिलो जैसा मूर्तिकार एक अनगढ़ पत्थर को एक मूर्ति में बना डालता है, तो ईश्वर के करीब होने का थोड़ा-सा अनुभव होता है, क्योंकि स्रष्टा हुआ| जब कोई नर्तक एक नृत्य को जन्म देता है और उस नृत्य में डूब जाता है, तो थोड़ी-सी ईश्वर की झलक मिलती है। क्योंकि ऐसा ही ईश्वर अपनी सृष्टि में डूब गया है और नाच में लीन हो गया है। जब कोई कवि एक गीत को ले आता भीतर के शून्य से पकड कर...... :बड़ा कठिन है लाना, शब्द छूट-छूट जाते हैं, शून्य पकड़ में आता नहीं, लेकिन बांध लाता किसी तरह धागों में शब्दों के, भाषा के-और जब गीत का जन्म होता है, तो उसके चेहरे पर जो आनंद की आभा है, वैसी ही आनंद की आभा ईश्वर ने जब सृष्टि बनाई होगी तो उसके चेहरे पर रही होगी।
खयाल रखना, न तो कोई ईश्वर है, न कोई चेहरा है। यह तो मैं कवि की बात समझा रहा हूं तो कवि की भाषा का उपयोग कर रहा हां एक ढंग है स्रष्टा हो कर ईश्वर के पास पहुंचने का क्योंकि