Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 11
________________ खोजियो! तुम नहीं मानोगे लेकिन संतो का कहना सही है जिस घर में हम घूम रहे हैं उससे निकलने का रास्ता नहीं है शून्य और दीवार दोनों एक हैं आकार और निराकार दोनों एक हैं जिस दिन खोज शांत होगी तुम आप से यह जानोगे कि खोज पाने की नहीं खोने की थी। यानी तुम सचमुच में जो हो वही होने की थी। खोजियो! तुम नहीं मानोगे। लेकिन सत्य ऐसा ही है। खोजना नहीं है, तुम उसे लिए ही बैठे हो। कहीं जाना नहीं है, तुम उसके साथ ही पैदा हुए हो सत्य तुम्हारा स्वभाव-सिद्ध अधिकार है। तुम चाहो तो भी उसे छोड़ नहीं सकते। तुम चाहो भी कि उसे गंवा दें तो गंवा नहीं सकते; क्योंकि तुम ही वही हो, कैसे गवाओगे? कहां तुम जाओगे? जहां तुम जाओगे, सत्य तुम्हारे साथ होगा। यह कहना ही ठीक नहीं कि सत्य तुम्हारे साथ होगा, क्योंकि इससे लगता है जैसे दो हैं। तुम सत्य हो। तत्वमसि...... :तुम वही हो! तुम छोड़ोगे कैसे? भागोगे कैसे? बचोगे कैसे? चले जाओ गहनतम नर्क में, अंधकार से अंधकार में क्या फर्क पड़ेगा? तुम तुम ही होगे। भटको खूब, भूल जाओ बिलकुल अपने को-तुम्हारे भूलने से कुछ १री अंतर न पड़ेगा; तुम तुम ही रहोगे। भूलो कि जागो, तुम तुम ही रहोगे। जिस दिन खोज शांत होगी तुम आप से आप यह जानोगे कि खोज पाने की नहीं, खोने की थी। यानी तुम सचमुच में जो हो वही होने की थी। इसलिए अष्टावक्र कह पाते हैं :'सुखेन एव उपशाम्यति।' बड़े सुखपूर्वक घट जाती है क्रांति! पत्ता भी नहीं हिलता और घट जाती है क्रांति। श्वास भी नहीं बदलनी पड़ती, पैर भी नहीं उठाना पड़ता। कहीं गए बिना आ जाती है मंजिल। क्योंकि मंजिल तुम अपने भीतर लिए चल रहे हो। तुम्हारा घर तुम्हारे भीतर है।

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