Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 14
________________ कम्बोज, कम्पन, प्रयंग, प्रभंजन और प्रभास नामक दस पुत्र उत्पन्न हुए। उनकी अत्यन्त रूपवती सात पुत्रियाँ भी हुईं जिनके नाम हैं - प्रियकारिणी, मृगावती, सुप्रभादेवी, चेलिनी, ज्येष्ठा और चन्दना। इनमें से प्रियकारिणी (त्रिशला) का विवाह श्रेष्ठ नाथवंशी कुण्डलपुर नरेश सिद्धार्थ के साथ कर दिया गया। इसी प्रकार उत्तरपुराण के 75 वें पर्व में वर्णन आया है - सिंध्वाख्ये विषये भूभृद्वैशाली नगरेभवत्। चेटकाख्योतिविख्यातो विनीत: परमार्हतः।। 3 ।। 11 इस ग्रन्थ में भी राजा चेटक के दस पुत्र एवं सात पुत्रियों का कथन करते हुए ग्रन्थकार ने कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ का वर्णन किया है। उपर्युक्त प्रमाणों से सहज समझा जा सकता है कि बिहार प्रान्त में कुण्डलपुर और वैशाली दोनों अलग - अलग राजाओं के अलग-अलग नगर थे तथा कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ एवं वैशाली के राजा चेटक का अपना - अपना विशेष अस्तित्व था। अत: एक-दूसरे के अस्तित्व को किसी की प्रदेश सीमा में गर्भित नहीं किया जा सकता है। कुछ व्यवहारिक तथ्य - 1. किसी भी कन्या का विवाह हो जाने पर उसका वास्तविक परिचय ससुराल से होता __ है न कि मायके (पीहर) से। 2. उसकी सन्तानों का जन्म भी ससुराल में ही होता है। हॉ! यदि ससुराल में कोई विशेष असुविधा हो या सन्तान का जन्म वहाँ शुभ न होता हो तभी उसे पीहर में जाकर सन्तान को जन्म देना पड़ता है। पुत्र का वंश तो पिता के नाम एवं नगर से ही चलता है न कि नाना - मामा के वंश और नगर से उसकी पहचान उचित लगती है। इन व्यवहारिक तथ्यों से महावीर की पहचान ननिहाल वैशाली और नाना चेटक से नहीं किन्तु पिता की नगरी कुण्डलपुर एवं पिता श्री सिद्धार्थ राजा से ही मानना शोभास्पद लगता है। अपना घर एवं नगर भले ही छोटा हो किन्तु महापुरूष दूसरे की विशाल सम्पत्ति एवं नगर से अपनी पहचान बनाने में गौरव नहीं समझते हैं। फिर वैशाली के दस राजकुमार किनके उत्तराधिकारी बने? जैन ग्रन्थों के पौराणिक तथ्यों से यह नितान्त सत्य है कि राजा चेटक के दस पुत्र एवं सात पुत्रियाँ थीं। इनमें से पाँच पुत्रियों के विवाह एवं दो के दीक्षाग्रहण की बात भी सर्वविदित है। किन्तु यदि तीर्थकर महावीर को वैशाली के राजकुमार या युवराज के रूप में माना गया तो राजा चेटक के दशों पुत्र अर्थात् महावीर के सभी मामा क्या कहलाएंगे? क्या वे कुण्डलपुर के राजकुमार कहे जाएंगे? यह न्यायिक तथ्य भी महावीर को कुण्डलपुर का युवराज स्वीकार करेगा न कि वैशाली का। अत: कुण्डलपुर के राजकुमार के रूप में ही महावीर का अस्तित्व सुशोभित होता है। अपनी शोध साम्रगी छोड़कर दूसरे साक्ष्यों पर विश्वास क्यों करें? महावीर के पश्चात् जैनशासन दिगम्बर और श्वेताम्बरों इन दो परम्पराओं में विभक्त 12 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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