Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 84
________________ सुवाच्यता के स्थायित्व के लिये लेमिनेशन घातक है। प्राचीनतम और महत्वपूर्ण ग्रन्थ : यहाँ ऐसे अनेक ग्रन्थ हैं जो लिपि एवं कागज का अवलोकन करने से अत्यन्त प्राचीन प्रतीत होते हैं, किन्तु उनमें संवत् निर्दिष्ट नहीं है। संवत् - युक्त सर्वप्राचीन ग्रन्थ सामायियारी भाषा प्राकृत, संवत् 1363, ग्रन्थ संख्या 871 है। इस भण्डार में षट्पाहुड की एक महत्वपूर्ण पाण्डुलिपि है जिसमें चिन्तामणि अपरनाम देवीसिंह कृत हिन्दी पद्यानुवाद है। यह टीका अद्यतन अप्रकाशित है, इसका रचना काल संवत् 1801 तथा ग्रंथांक 323 है। इसका विस्तृत परिचय हमने षट्पाहुड की पद्यानुवादयुक्त अप्रकाशित पाणडुलिपि शीर्षक से 'अर्हत् वचन', इन्दौर, शोध त्रैमासिकी, वर्ष 13, अंक-1, जनवरी 2001 में प्रकाशित करवाया है। ताड़पत्रीय ग्रन्थ : ताडपत्रीय ग्रन्थों के 3 वेष्टन - 326, 327,328 हैं। प्रत्येक वेष्टन में एकाधिक ग्रन्थ हैं। वेष्टन 326 में द्वादशानुप्रेक्षा है। इसकी लिपि हलेयकन्नड होने से ये पढ़ी नहीं जा सकी, स्थिति आदि से अत्यन्त प्राचीन प्रतीत होती है। आदरणीय पं. चन्दनलाल जैन शास्त्री अपनी 15 वर्ष की वय सन् 1935 - 36 से इस संस्था व भण्डार की व्यवस्था देख रहे हैं। शास्त्रीजी बहुत ही विद्वान, प्रतिष्ठाचार्य, समाजसेवी व मृदुस्वभावी हैं, वर्तमान में वे ट्रस्ट व सरस्वती भवन के मंत्री हैं। 80 की वय होने के कारण सीढ़ियाँ आदि चढ़ने में उन्हें कठिनाई होने के बावजूद वे हमारे साथ में द्वितीय मंजिल पर स्थित शास्त्र भंडार में तीनों दिन गये, शास्त्रों का मिलान करवाया तथा कुछ महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की प्रशस्तियों का वाचन करवाया और हमें पूर्ण स्नेह व वात्सल्य दिया, हम उनके आभारी हैं। गुरुकुल के व्यवस्थापक श्री पृथ्वीराज जैन ने हमारे आवासादि की व्यवस्था करवाई तथा उपव्यवस्थापक श्री गैवीलाल जैन ने भण्डार के मिलान करने में हमारा सहयोग किया, ये सभी धन्यवाद के पात्र हैं। प्राप्त - 15.3.01 यह सर्वविदित है कि भारत में जैन धर्मावलम्बी धार्मिक दृष्टि से अल्पसंख्यक हैं किन्तु केन्द्र सरकार एवं अधिसंख्य प्रान्तीय सरकारों द्वारा औपचारिक रूप से जैनों को अल्पसंख्यक रूप में अधिसूचित न किये जाने के कारण हम ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, सिख एवं पारसी समदायों के समान संवैधानिक संरक्षण नहीं प्राप्त कर पा रहे। दिगम्बर जैन महासमिति के राष्टीय अध्यक्ष श्री प्रदीपकमारसिंह कासलीवाल के नेतत्व में जैन समाज द्वारा चलाये गये चरणबद्ध आन्दोलन के फलस्वरूप म.प्र. के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री दिग्विजयसिंहजी ने म.प्र. के जैन समदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया है। एतद् विषयक अधिसूचना क्रमांक एफ-11- 18/98/54-2 दिनांक 29.5.2001 को जारी की जा चकी है। हम एतदर्थ म.प्र. के माननीय मुख्यमंत्रीजी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हैं। सम्पादक 82 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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