Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 88
________________ 4 मार्च 2001, अपरान्ह 4.00 बजे - चतुर्थ सत्र विषय - शोध संस्थानों की समस्याएँ एवं समाधान अध्यक्षता - प्रो. एस. सी. अग्रवाल, मेरठ मुख्य अतिथि - श्री अजितकुमारसिंह कासलीवाल, इन्दौर संचालन - डॉ. नलिन के. शास्त्री, बोधगया मंगलाचरण - कुमारी अनुप्रिया जैन, इन्दौर सर्वप्रथम प्रो. भागचन्द्र जैन 'भास्कर', निदेशक - पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी के शोध पत्र "जैन शोध संस्थानों के टूटते बिखरते कंगूरे" का वाचन और संस्थानों से सम्बद्ध समस्याएँ तथा निदान पर अपने विचार डॉ. महेन्द्र कुमार जैन 'मनुज' ने रखें। डॉ. अभय प्रकाश जैन - ग्वालियर, डॉ. संजीव सराफ - सागर, श्री कुमार अनेकांत जैन - लाडनूं आदि ने अपने विचार व्यक्त किए, किन्तु सबसे अधिक चर्चित रहा सुदीर्ध समय से शोध संस्थानों को प्रगति पथ पर बढ़ाने के अनुभवों पर आधारित डॉ. अनुपम जैन का वक्तव्य। इन्होंने अपने उद्बोधन में शोध संस्थानों की समस्याओं पर विस्तार से विश्लेषण प्रस्तुत किया एवं कहा कि 'फलते-फूलते संस्थान अचानक अपनी चमक प्रबंधन की महत्वाकांक्षाओं के चलते खो देते हैं। कोई भी संस्था संचालक के समर्पण के बिना प्रगति नहीं कर सकती एवं जब प्रबंधन विकल्प खड़ा करने लगता है तब संचालक का समर्पण समाप्त हो जाता है।' प्रसिद्ध समाजसेवी एवं बहुश्रुत व्यक्तित्व श्री अजित कुमार सिंह कासलीवाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शोध संस्थान के प्रबंधकों को स्वयं प्रबंधक न मानते हुए संस्थान के एक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना चाहिए तभी संस्थान प्रगति कर सकता है। इसकी मिसाल डॉ. अनुपम जैन एवं उनके द्वारा संचालित कुंदकुंद ज्ञानपीठ है। इस सत्र में पूज्य बालाचार्य श्री योगीन्द्रसागरजी महाराज का सान्निध्य रहा। पूज्य बालाचार्यश्री ने कहा - 'कुंदकुंद ज्ञानपीठ अच्छी प्रगति कर रहा है, इसका कारण है कि डॉ. अनुपम जैन जैसा कर्मठ एवं दूरदृष्टि सम्पन्न विद्वान इसे गति दे रहा है, इसके संचालकों व कार्यकर्ताओं को हमारा आशीर्वाद सदा रहेगा।' 5 मार्च 2001, प्रात: 8.00 बजे - समापन सत्र अध्यक्षता - श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल, अध्यक्ष - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर मुख्य अतिथि - न्यायमूर्ति श्री अभय गोहिल, म.प्र. उच्च न्यायालय, इन्दौर संचालन - डॉ. प्रकाशचन्द जैन, इन्दौर मंगलाचरण - पं. रतनलाल जैन शास्त्री, इन्दौर इस समारोह में प्रो. धर्मचन्द्र जैन ने संपूर्ण गोष्ठी में विद्वतजनों द्वारा पठित आलेखों का निष्कर्ष प्रस्तुत किया। समागत विद्वानों का सम्मान किया गया। मान. श्री गोहिल जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि सुखद व उज्ज्वल भविष्य की कल्पना तभी साकार होगी जब देश के गौरवपूर्ण अतीत पर दृष्टिपात करेंगे। इस हेतु भारत की प्राचीन भाषा 'प्राकृत' व 'पालि' का अध्ययन आवश्यक है। इस क्षेत्र में कुंदकुंद ज्ञानपीठ द्वारा किये जा रहे प्रयास प्रशंसनीय व अनुकरणीय है। समारोह के अध्यक्ष, जो ज्ञानपीठ के भी अध्यक्ष हैं, ने अपनी संस्था की भावी रूपरेखा पर प्रकाश डाला। पूज्य बालाचार्य श्री ने सभी को आशीर्वाद दिया। 86 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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