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वर्ष - 13, अंक-2, अप्रैल 2001, 91-92
अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर,
भगवान ऋषभदेव जयन्ती एवं संगोष्ठी आगरा - 18 - 19 मार्च 2001
-राजीव जैन*
देश की इतिहास, पुरातत्व, साहित्य विषय की अग्रणी शोध संस्था ऋषभदेव प्रतिष्ठान की ओर से एम. डी. जैन कॉलेज सभागार, आगरा में तीर्थकर ऋषभदेव महोत्सव एवं संगोष्ठी का 19-19 मार्च को आयोजन किया गया।
यह संगोष्ठी परमपूज्य
मुनिश्री पुलकसागरजी महाराज एवं वं संगोष्ठा।
क्षुल्लक श्री प्रगल्भसागरजी
महाराज के सान्निध्य में प्रारम्भ त. आगरा
हुई, जिसकी अध्यक्षता आगरा मण्डल के आयुक्त श्री एस. एन. झा ने की। दीप प्रज्ज्व लन नगर के सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री रतनलालजी जैन बैनाड़ा ने किया। मुख्य वक्ता के रूप में दरभंगा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य प्रभाकर मिश्र उपस्थित थे। ऋषभदेव प्रतिष्ठान के अध्यक्ष
श्री स्वरूपचन्दजी जैन 'मार्सन्स' उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता आचार्य प्रभाकर मिश्र (पूर्व कुलपति - दरभंगा
ने सभी अतिथियों का अभिनन्दन विश्वविद्यालय) का शाल ओढ़ाकर सम्मान करते हुए ऋषभदेव प्रतिष्ठान के अध्यक्ष श्री स्वरूपचन्द जैन, आगरा
किया। प्रतिष्ठान के महासचिव
श्री हृदयराज जैन, दिल्ली ने प्रतिष्ठान की ओर से पूर्व में आयोजित संगोष्ठियों की जानकारी दी एवं प्रतिष्ठान की स्थापना का उद्देश्य तथा भावी योजनाओं से अवगत कराया।
भगवान ऋषभदेव के सामाजिक अवदान पर बोलते हुए उनके द्वारा प्रवर्तित असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य एवं शिल्प इन छह विद्याओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस देश का नाम भगवान ऋषभदेव के प्रथम पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम से ही 'भारत' प्रचलित हुआ।
सुप्रसिद्ध पुरातत्वविद् प्रो. मुनीशचन्द्र जोशी, पूर्व महानिदेशक - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, ने कहा कि ऋषभदेव भारतीय संस्कृति के प्रतीक है। आपने वेदों में उल्लिखित वातरशना आदि मुनियों की परम्परा को जैन परम्परा में संदर्भित बताया। श्री जोशी ने कहा कि बौद्ध परम्परा में सिखी नामक जिन बुद्ध का उल्लेख है वह ऋषभदेव ही प्रतीत होते हैं क्योंकि उन्हें भी ऋषभदेव की तरह शिखर धारण करने वाला बताया है।
डॉ. चन्दनलाल पाराशर ने आचार्य जिनसेन रचित 'आदि पुराण' के मंगलाचरण से अपने वक्तत्य का प्रारम्भ करते हुए ऋषभदेव को मानव संस्कृति का सृष्टा बताते हुए उनके द्वारा प्रवर्तित सद्विचार, सदविद्या एवं सदाचार की आधुनिक युग में महत्ता बतलाई।
महोत्सव के प्रमुख वक्ता एवं सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य प्रभाकर मिश्र (पूर्व कुलपति - दरभंगा विश्वविद्यालय) ने भगवान ऋषभदेव के ऐतिहासिक व्यक्तित्व पर प्रकाश हालते हुए कहा कि कृषि परम्पराओं को स्थापित करने का श्रेय ऋषभदेव को है। उनके द्वारा प्रवर्तित अक्षर विद्या आज ब्राह्मी लिपि के रूप में सम्पूर्ण
अर्हत् वचन, अप्रैल 2001
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