Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 114
________________ गतिविधियाँ प्रयाग में शिक्षामंत्री द्वारा पाठ्यपुस्तकों में संशोधन की घोषणा जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की असीम अनुकम्पा से पाठ्यपुस्तकों में जैनधर्म के विषय में प्रचलित भ्रांतियों का निराकरण प्रयाग - इलाहाबाद में 'तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली' पर आयोजित 'भगवान ऋषभदेव पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं महाकुम्भ मस्तकाभिषेक' के अवसर पर 'भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव' के मंच से हो गया। भारत सरकार के केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री मुरलीमनोहरजी जोशी द्वारा 4 फरवरी 2001 को निम्न घोषणा की गई - 'पूज्य माताजी! आपने पाठ्य पुस्तकों के बारे में जो कहा है, ठीक कहा है। मेरे ध्यान में यह बात लाई गई थी और मैंने पुस्तकों को देखा तो उसमें एक जैनधर्म ही नहीं बल्कि अनेक धर्मों के विषय में अनर्गल बातें लिखी गई हैं। हमने आदेश कर दिया है, पुस्तकों का संशोधन हो रहा है और मैंने उनको आदेश दिया है कि किसी भी पुस्तक में ऐसी कोई भी बात नहीं होनी चाहिये जो किसी भी धर्मावलम्बी को चोट पहँचाये, उसके सिद्धान्तों के विरुद्ध हो। सभी धर्मों के जो वास्तविक अंश हैं, जो उसकी सत्यता है और जिसे उसके धर्माचार्य मानते हैं, प्रमाणित करते हैं कि यह बात ठीक है, उसको आप उसमें शामिल करें और ऐसी बातें जो उस धर्म को मानने वालों में असंतोष पैदा करती हैं, उनके प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करती हो, उसको सब पुस्तकों से आप निकाल दें। अब एक बार जब पुस्तक चलती है तो तब तक वह बनी रहती है जब तक इम्तहान नहीं हो जाता, क्योंकि वह पाठ्य पुस्तकों में शामिल हो जाती है, लेकिन जो अगले साल से पढ़ाई के लिये पुस्तकें आयेंगी उसमें इस तरह से सुधार होगा कि जब दसवीं या बारहवीं कक्षाओं के इम्तहान हों तो उसमें से वह सब अंश निकले हुए हों। हमने एक और आदेश दिया है कि अगला वर्ष भगवान महावीर के 2600 वें जन्मोत्सव के रूप में मना रहे हैं उसमें जो हमारे केन्द्रीय विद्यालय हैं, C.B.S.E. से सम्बन्धित हैं, उसमें जो जानवरों की चीरफाड़ करके पढ़ाई कराई जाती है, उसे बन्द कर देना चाहिये, इसका भी हमने प्रयत्न किया है। अनेक ऐसे मिट्टी, प्लास्टिक आदि के उपकरण हैं जिनके द्वारा हम उन्हें शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। आशा है कि साल - छ: महीने में हम इसे भी पूरा कर देंगे।' ज्ञातव्य है कि पाठ्य पुस्तकों में जैनधर्म के विषय में प्रचलित भ्रांतियों के निराकरण हेतु एवं जैन धर्म की प्राचीनता के प्रचार-प्रसार हेतु पूज्य माताजी द्वारा सन् 1993 से अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम देश - विदेश में आयोजित किये जाते रहे हैं, उसी श्रृंखला में 4-6 अक्टूबर 98 को हस्तिनापुर में भगवान ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन आयोजित किया गया तथा 4 फरवरी 2000 को पूज्य माताजी की पावन प्रेरणा से दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किला मैदान से प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी बाजपेयी द्वारा एक वर्ष तक देश - विदेश में मनाये जाने वाले 'भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव का शुभारम्भ किया गया था। एवं अब प्रयाग - इलाहाबाद में 'भगवान ऋषभदेव पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं महाकुम्भ मस्तकाभिषेक' के विराट आयोजन के साथ समापन समारोह संपन्न हुआ। इस एक वर्ष में विभिन्न स्थानों पर 1008 'ऋषभदेव - महावीर' संगोष्ठियाँ, 108 ऋषभदेव विधान, अन्य लघु एवं वृहद् विधान, ऋषभदेव दशावतार नाटक व अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित की गयीं तथा 'ऋषभदेव कीर्तिस्तम्भ' का भी निर्माण किया गया। .ब्र. (कु.) इन्दु जैन, संघस्थ - भणिनीप्रमख श्री ज्ञानमती माताजी 104 Jain Education International अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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