Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 113
________________ गतिविधियाँ ग्वालियर में ऋषभ जयंती 'भारत का एकमात्र धर्म और एकमात्र पहचान उसकी मानवतावादी सांस्कृतिक विरासत है। जिस प्रकार अंग्रेजों की पहचान उनका वाणिज्य कौशल, फ्रांस की पहचान उसका राजनैतिक कौशल और अमेरिका की पहचान उसकी सुदृढ़ अर्थव्यवस्था है, उसी प्रकार भारत की पहचान उसकी आध्यात्मिकता और उसकी सांस्कृतिक समृद्धि है। तीर्थंकर ऋषभदेव भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परम्परा के आदिपुरुष थे। दुर्भाग्य से आज भारतीय समाज, जिसकी आधारशिला त्याग और दान में थी, की दिशा परिवर्तित होकर भोगवादी संस्कृति की ओर मुड़ रही है। हम सबको इसे रोकना होगा अन्यथा हम अपनी सांस्कृतिक पहचान ही खो बैठेंगे।' यह विचार यहाँ भगवान ऋषभदेव जयंती के अवसर पर महावीर भवन परिसर में श्री 2500 वाँ भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव न्यास द्वारा आयोजित दो दिवसीय व्याख्यानमाला का समापन करते हुए डॉ. राधारमण दास, पूर्व कुलपति-जीवाजी विश्वविद्यालय ने मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किये। इस व्याख्यानमाला के प्रथम दिन, 17 मार्च 2001 को, इसका उद्घाटन करते हुए श्री पूरनसिंह पलैया, महापौर - ग्वालियर ने भगवान महावीर के 2600 वें जन्म दिवस महोत्सव के सन्दर्भ में श्री 2500 वाँ भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव न्यास द्वारा आयोजित इस व्याख्यानमाला के आयोजन का स्वागत करते हुए कहा कि सभी क्षेत्रों में जैन समाज का योगदान अनुकरणीय रहता है। इस न्यास ने 2500 वें निर्वाण महोत्सव की स्मृति में ग्वालियर के सबसे बड़े सभागार महावीर भवन और हाईकोर्ट मार्ग पर कीर्ति स्तम्भ का निर्माण कर अनुकरणीय कार्य किया था। भगवान महावीर के 2600 वें जन्म जयन्ती वर्ष के अवसर पर भी जैन समाज ऐसे जो भी स्मरणीय और कल्याणकारी तथा विकासमूलक कार्य करेगा, नगर पालिक निगम उसमें पूर्ण सहयोग करेगा। व्याख्यानमाला का प्रथम सत्र श्वे. जैन मनि श्री नेमीचन्द्रविजयजी महाराज के सान्निध्य में तथा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के रीजनल मेनेजर श्री आजादकुमार जैन की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस सत्र के मुख्य वक्ता आचार्य गोपीलाल 'अमर', अनुसंधान अधिकारी - भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली ने कहा कि पानी को कितना भी गर्म करें, ताप के समाप्त होते ही वह ठंडा हो जायेगा, इसी प्रकार मनुष्य कितना भी क्रोध करे, हिंसा करे, आवेश के खत्म होते ही वह शांत होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य प्रकृति से अहिंसक और शांतप्रिय है। जिस प्रकार प्रकृति की शुरुआत भी नहीं हुई, वह अनादि है, उसी प्रकार अहिंसा का प्रतिपादक जैन धर्म अनादि है। वह तब से है जबसे मानव है। व्याख्यानमाला के प्रारम्भ में डॉ. अभयप्रकाश जैन और पं. सुमतिचन्द्र जैन शास्त्री ने व्याख्यान दिया। अंत में मुनिजी के प्रवचन सम्पन्न हुए। द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के निदेशक मण्डल के सदस्य शिक्षाविद डॉ. प्रकाशचन्द्र जैन, इन्दौर ने भगवान ऋषभदेव के जीवन और दर्शन का विस्तृत विवेचन करते हुए कहा कि उन्होंने भोग भूमि को कर्मभूमि में बदला और असि, मसि, कृषि, विद्या, शिल्प, वाणिज्य तथा समाज व्यवस्था और विवाह संस्था को जन्म दिया और अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपिज्ञान और सुन्दरी को गणित की शिक्षा देकर इन विषयों को भी जन्म दिया। साध्वी गुरुछाया (अधिष्ठाता मुनि सुशील आश्रम, नई दिल्ली) ने 'भगवान ऋषभदेव और भारतीय संस्कृति' विषय पर तथा डॉ. कृष्णा जैन ने 'नारी शिक्षा और स्वतंत्रता के जनक भगवान ऋषभदेव' विषय पर व्याख्यान दिया। सभाओं के प्रारम्भ में न्यास के अध्यक्ष श्री केशरीमल गंगवाल ने अतिथियों एवं विद्वानों का स्वागत किया तथा मंत्री श्री मानिकचन्द्र गंगवाल ने स्वागत भाषण एवं न्यास की गतिविधियों की जानकारी दी। व्याख्यानमाला का विषय प्रवर्तन, संयोजन एवं संचालन श्री रवीन्द्र मालव ने किया। न्यास के उपमंत्री श्री तेजकुमार जैन ने आभार प्रदर्शन किया। - रामजीत जैन, एडवोकेट, ग्वालियर अर्हत वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International 103 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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