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जनवरी मार्च 2001 का अर्हत् वचन पढ़ा, बड़ी प्रसन्नता हुई। सम्पादकीय का शीर्षक 'जैन शोध संस्थानों की समस्यायें और उनका समाधान पढ़ा। आपने वस्तुस्थिति का वास्तविक चित्रण किया है। इसके लिये आपको धन्यवाद आपने सात कालमों का उल्लेख करके उनके निदान लिखे, वास्तव में समस्त शोध संस्थानों को इन बातों पर ध्यान देना चाहिये तभी वे विकास की धारा में बहेंगे और जैन साहित्य के विपुल भण्डारों की रक्षा कर सकेंगे। आज के युग में युवा पीढ़ी का महत्वपूर्ण कर्तव्य यह है कि जो हमारे पूर्वज धार्मिक, सामाजिक, पारिवारिक धरोहरें छोड़ गये हैं उनका संरक्षण संवर्द्धन विकास आदि अपनी महत्वपूर्ण इच्छाओं का दमन करके भी करना चाहिये, क्योंकि वे ही हमारी पहचान हैं। आपके द्वारा लिखी गई सम्पादकीय के लिये साधुवाद।
1.03.01
अर्हत् वचन का जन - मार्च 2001 अंक मिला। शोध संस्थानों के सन्दर्भ में आपकी चिन्ता स्वाभाविक है। शोध संस्थान को चलाना सबके वश की बात नहीं है। कतिपय शोध संस्थानों को हमारे प्राच्य मनीषियों ने अपने रक्त से सींच कर पल्लवित / पुष्पित किया है। आज भी वैसे लोग मौजूद हैं, बस पहचानने की जरूरत
है।
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पत्रिका में सभी लेख शोध सामग्री से भरपूर है। पाण्डुलिपि परिचय का तो हर अंक में एक स्तम्भ से देना चाहिये।
18.03.01
■ सुरेन्द्र जैन 4, गणेश वर्णी वार्ड, बकस्वाहा (छतरपुर) म.प्र.
20.02.01
It is great pleasure and opportunity to be here, know everybody here & efforts being put by your organisation. Please keep it up. Best wishes.
20.01.01
field.
28.4.01
डॉ. ऋषभचन्द्र जैन व्याख्याता प्राकृत, जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली 344128
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Jain Education International
ज्ञानपीठ के माध्यम से यह जो नवीन प्रयास किया गया है, वह सर्वप्रथम तो अनेकता में एकता का अनूठा कार्य है। क्योंकि किसी तरह का भेदभाव न रखते हुए सभी पत्र-पत्रिकाओं को एक मंच पर स्थापित किया जिससे शोध करने वालों को बहुत सुविधा प्राप्त हो गई है। साथ ही सारे देश के जैन साहित्य की जानकारी भी यहाँ उपलब्ध की गई है ऐसे प्रयास अनुकरणीय है।
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■ Rupesh Jain R-838, New Rajendra Nagar, New Delhi-110060
It was great pleasure to visit Kundakunda Gyanpitha, Indore. I am very neuch impressed for research work on ancient Jain scriptures which contain knowledge on history, geography. atyurvedic scriptures, jyotish. yantras & mantras, mathematics. science, practically on all subjects of knowledge. It requires great passion to do such type of research work. Shri Devkumarji, the president and Ajitkumarji Kasliwal take very great interest by mind, money and energy. I heartly congratulate them and wish them all success in these fields of Jain research work.
I wish. I can visit this institute again and again to do something in this
एम. के. जैन मंत्री उदासीन आश्रम, द्रोणगिरि
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■ Dipchand Gardi 'Ushakiran' Building, M.L. Dahanakar Marg, Mumbai- 400 026
अर्हत वचन अप्रैल 2001
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