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अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर)
वर्ष - 13, अंक - 2, अप्रैल 2001,83 - 90 जैन विद्या संगोष्ठी एवं पुरस्कार समर्पण समारोह
इन्दौर, 3 - 5 मार्च 2001
- डॉ. अनुपम जैन*
दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट, इन्दौर द्वारा स्थापित एवं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर द्वारा मान्य शोध केन्द्र कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ में दिनांक 3-5 मार्च 2001 तक परमपूज्य बालाचार्य श्री योगीन्द्रसागरजी महाराज के ससंघ मंगल सान्निध्य में त्रिदिवसीय जैन विद्या संगोष्ठी एवं पुरस्कार समर्पण समारोह सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के संयोजक पं. जयसेन जैन (सम्पादक - सन्मति वाणी) एवं श्री अरविन्दकुमार जैन (प्रबन्धक) थे। 3 मार्च 2001, अपरान्ह 2.00 बजे - उदघाटन सत्र अध्यक्षता प्रो. प्रभुनारायण मिश्र, निदेशक - प्रबन्ध अध्ययन संस्थान, देवी अहिल्या
वि.वि., इन्दौर मुख्य अतिथि - श्री सूरजमल बोबरा, इन्दौर विशेष अतिथि - श्री दिलीप बोबरा, उपाध्यक्ष - जैन एकेडेमिक फाउन्डेशन इन नार्थ अमेरिका
(JAFNA), अमेरिका संचालन - श्रीमती रूपाली बंडी, इन्दौर मंगलाचरण - पं. नाथूराम डोंगरीय, इन्दौर
प्रो. पी. एन. मिश्र के सारगर्भित एवं प्रेरक उद्बोधन के उपरान्त उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए पूज्य बालाचार्यजी ने कहा कि व्यक्ति पंच परमेष्ठी की आराधना करते - करते स्वयं परमेष्ठी बनने की क्षमता रखता है। उन्होंने ध्रुव आख्यान के कुछ अंशों से उदाहरण देते हए कहा कि आज मन वाला मानव मनमानी कर रहा है, उसे जो रूचिकर लगता है वही करता है, वह सुनीति की परवाह नहीं करता। मुख्य अतिथि ने अपने वक्तव्य में कहा कि इतिहासज्ञ जैन सस्कृति के ऐतिहासिक तथ्यों को बिना किसी पूर्वाग्रह के निष्पक्ष रूप से रखे। जैन इतिहास या तो तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है या उसे नजरअन्दाज कर दिया जाता है। उनका वक्तव्य हम आगामी पृष्ठों पर उद्धृत कर रहे हैं।
इस सत्र में सर्वसम्मति से डॉ. धर्मचन्द जैन, कुरुक्षेत्र द्वारा प्रस्तुत तथा सर्वानुमति से अनुमोदित प्रस्ताव द्वारा तालिबानों द्वारा भगवान बुद्ध की मूर्तियों को नष्ट करने की निंदा की गई। प्रस्ताव का पाठ निम्नवत् है -
'बौद्ध धर्म भारत में उद्भूत और श्रमण संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। इसके प्रणेता भगवान बुद्ध की प्रतिमाओं तथा समस्त मूर्तियों को तालिबान द्वारा तोड़ा जा रहा है। हम तालिबान से अपील करते हैं कि प्राचीन संस्कृति की धरोहरों व आस्था के केन्द्र इन मूर्तियों को न तोड़ा जाये।' (बाद में तालिबान ने इन मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया - सम्पादक) 3 मार्च 2001, अपरान्ह 4.00 बजे - प्रथम सत्र
- जैन इतिहास अध्यक्षता - पं. शिवचरनलाल जैन, अध्यक्ष - तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ, मैनपुरी
विषय
अर्हत्वचन,अप्रैल 2001
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