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बहुत प्रसन्न व आश्चर्यान्वित था कि इस भण्डार के पास पर्याप्त साधन और उपकरण न होते हुए भी यह भण्डार व्यवस्थित, सुरक्षित और अच्छी स्थिति में है भित्तीय अलमारियों । तथा काष्ठ की अलमारियों में रखे होने के बावजूद न तो ग्रन्थों में सीलन, न दीमक और न सिल्वरफिश आदि कीट पाये गये। किन्तु जब अलमारी नं. 9 के शास्त्रों को बाहर निकालकर खोला तो सारी प्रसन्नता निराशा में बदल गई क्योंकि शास्त्रों में लगे गत्ते बेतरतीब ऐंठे हुए थे। शास्त्रों के पत्र पूरी तरह चिपक रहे थे। कर्मचारी गैवीलाल से पूछने पर उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष ग्रीष्म काल में शास्त्र धूप में रखे जाने के क्रम में जून 2000 में भी धूप में रखे गये। एक दिन कर्मचारी अलमारी नं. 9 के सभी शास्त्र धूप में रखकर दो फर्लांग दूरी पर स्थित गुरुकुल में आ गये। इस बीच अचानक बारिस हुई। कर्मचारियों ने सरस्वती भवन में जाकर देखा तो शास्त्र वेष्टन सहित पूरी तरह भीग गये थे। सभी शास्त्र भण्डार में लाये और उन्हें गीले बंधे हुए में ही 3-4 दिन छाया में सुखाया गया और उसी तरह गड्डमड्ड अलमारी में रख दिया।
कृत कार्य :
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■ हमने क्रम से एक एक अलमारी के शास्त्र निकालकर पुरानी सूची से विवरण और नई सूची से शास्त्र मिलान करते हुए प्रत्येक शास्त्र की विवरण के साथ वास्तविक संख्या अंकित की।
■ जिस शास्त्र के सम्वत् या रचयिता के नाम में सन्देह हुआ उसका विद्वान् व्यवस्थापक शास्त्रीजी के साथ मिलकर वाचन और सन्देह निवारण किया।
■ भित्तीय अलमारी संख्या 9 में ऐसे शास्त्र थे जो भींग गये थे। भींगने से उनके वेष्टन के ऊपर लगाये गये नाम, संख्या आदि विवरण धुल जाने से पूर्णतया मिट गये थे तथा सुखाने के बाद जिस क्रम में रखे हुए थे उन्हें बाहर लाकर व्यवस्थित किया। उनका नाम देखकर रजिस्टर में यत्र तत्र से उनके ग्रंथांक देखकर अंकित किये। शास्त्रों में भी स्लिपें लगाई व संख्यादि अंकित की । ■ मिलान में हमें शास्त्र संख्या 72, 364, 508, 514, 800, 890 नहीं मिले।
वर्तमान व्यवस्था :
शास्त्रों की स्थिति और व्यवस्था
शास्त्रों की लगातार देख रेख होती रही इसलिये ठीक रही। वर्तमान में सभी 1076 शास्त्र 10 अलमारियों में संयोजित हैं। इनमें 8 अलमारियाँ दीवारों में ही हैं तथा 2 काष्ट की हैं। इन्हीं में शास्त्रों को प्रकाशित पुस्तकों की भांति खड़ा करके रखा गया है। एक अच्छी बात यह है कि शास्त्र भण्डार किसी के लिये भी खुला नहीं छोड़ दिया जाता है, चाहे सामान्य अध्येता, विद्वान् या साधुगण ही क्यों न हों।
प्रत्येक वेष्टन के साथ 9x7 से.मी. का एक कार्ड ऊपर बंधा हुआ है जिसमें शास्त्र का नाम, शास्त्र संख्या और पत्र संख्या दी हुई है। प्रत्येक वेष्टन के साथ 6.3x4 से.मी. का एक छोटा टैग (स्लिप) धागे से बांधकर लटकाया हुआ है। इस टैग स्लिप - पर ग्रन्थ का नाम और ग्रन्थ संख्या अंकित है। यह कार्ड व्यवस्था अनुकरणीय है। प्रत्येक अलमारी पर स्लिप लगी है, उसमें किस क्रमांक से किस क्रमांक तक शास्त्र संयोजित हैं, यह लिखा हुआ है। भण्डार को क्षति :
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अर्हत् वचन, अप्रैल 2001
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