Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 81
________________ वर्ष - 13, अंक - 2, अप्रैल 2001, 79 - 82 अर्हत् वचन ) भट्टारक यशकीर्ति दिग. जैन सरस्वती भवन, ऋषभदेव कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) का सर्वेक्षण व शास्त्रों का मिलान -डॉ. महेन्द्र कुमार जैन 'मनुज'* स्वती भव श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट, भावनगर के आर्थिक सहयोग से कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर में डॉ. अनुपम जैन के निर्देशन में चलाई गतिमान जैन साहित्य सूचीकरण परियोजना के अन्तर्गत ऋषभदेव (केशरियाजी) के शास्त्र भण्डारों का सर्वेक्षण व शास्त्रों का मिलान किया तथा उसे व्यवस्थित कर प्रकाशित किया गया, जिसका विमोचन जैन विद्या संगोष्ठी के अवसर पर 4 मार्च 2001 को सम्पन्न हुआ। सन् 1942 में 'श्री भट्टारक यशकीर्ति दिगम्बर जैन धर्मार्थ ट्रस्ट के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची' नाम से एक पुस्तिका प्रकाशित हुई थी, उसमें 890 हस्तलिखित ग्रन्थों के विवरण प्रकाशित हुए थे। हमने उसी सूची के आधार पर पंडित चन्दनलाल जैन शास्त्री, ऋषभदेव से पत्र - सम्पर्क किया। उन्होंने 1081 शास्त्रों की वर्तमान सूची हमें प्रेषित की। किन्तु वर्तमान सूची में मात्र ग्रन्थों के नाम व ग्रंथ संख्या थी, अन्य विवरण नहीं थे। ऐसे में हमनें पूर्व प्रकाशित सूची से विवरण तथा प्राप्त वर्तमान सूची से ग्रथांक लेकर सूची कम्प्यूटर पर फीड करवाई और प्रथम प्रिन्ट आऊट पं. चन्दनलाल शास्त्री को इस प्रत्याशा के साथ भिजवाया कि वे शास्त्रों के मिलान कर भेजें। किन्तु इस कार्य में उन्होंने अपनी शारीरिक असमर्थता तथा अन्य किसी जानकार की अनुपलब्धता व्यक्त की। इस भण्डार के अवलोकन और मिलान के लिये 21 फरवरी 2001 को ऋषभदेव पहुँचा। ऋषभदेव (केशरियाजी) अतिशयकारी मंदिर से लगभग 100 मीटर पूर्व की ओर पूर्वाभिमुख दारक मशकीर्ति दिग ऋषभदेव एक तिमंजिला छोटा सा भवन है। इस पर बोर्ड लगा है भट्टारक यशकीर्ति भवन चैत्यालय एवं सरस्वती भवन। इस भवन में भूमितल में भक्तों, यात्रियों के रहने की व्यवस्था थी, प्रथम मंजिल पर भट्टारकजी की गादी, उनके उपदेश और रहने का स्थान है, द्वितीय मंजिल पर चैत्यालय तथा ग्रन्थ भंडार है और ऊपरी मंजिल पर एक कमरा साधना - स्थल है। पिछले 60 - 65 वर्ष से एक ही व्यक्ति इस भण्डार की व्यवस्था देख रहे हैं। इस कारण हमें अधिक असुविधा नहीं हुई। हमने देखा कि शास्त्रों को कुछ और व्यवस्थित किया गया है। पहले वेष्टन में रखा गया और उन पर स्वतंत्र ग्रंथांक दिये गये। एक अन्य बदलाव में ग्रन्थों को काफी अंशों में विषयवार व्यवस्थित कर अनुक्रम से उनमें ग्रंथांक अंकित किये गये और उसी क्रम में उन्हें व्यवस्थित किया गया है। इस कारण पूर्व प्रकाशित सूची पर्णतया रटट हो गई। यहाँ के सरस्वती भवन में 1666 मद्रित पुस्तकें तथा 1076 हस्तलिखित शास्त्र हैं। शास्त्र संख्या 1 से 750 तक मिलाने व अवलोकन के क्रम में मैं मन ही मन * शोधाधिकारी-पांडुलिपि सूचीकरण परियोजना, Clo. कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584,महात्मा गांधी मार्ग, इन्दौर-452001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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