Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 44
________________ है। इस आधार पर नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का समय ईसवी सन की दसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध तथा ग्यारहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध मानना समीचीन प्रतीत होता है। नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की निम्नलिखित रचनायें हैं - 1. गोम्मटसार : जीवकाण्ड 734 गाथात्मक + कर्मकाण्ड 962 गाथात्मक 2. त्रिलोकसार : 1018 गाथात्मक 3. लब्धिसार : 649 गाथात्मक 4. क्षपणासार : 653 गाथात्मक तृतीय नेमिचन्द्र द्रव्यसंग्रह और वृहद् द्रव्यसंग्रह के रचयिता नेमिचन्द्र मुनि हैं, सिद्धान्तिदेव जिनकी उपाधि है। पहले भ्रांतिवश गोम्मटसारादि के रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती को ही द्रव्यसंग्रह और वृहद्रव्यसंग्रह का रचयिता मान लिया गया था। डॉ. मोहनलाल मेहता एवं प्रो. हीरालाल कापड़िया ने गोम्मटसारादि के कर्ता को ही द्रव्यसंग्रह का कर्ता उल्लेखित किया है। परन्तु वास्तव में द्रव्यसग्रह के रचयिता नेमिचन्द्र गोम्मटसारादि के रचयिता नेमिचन्द्र से भिन्न हैं। वृहद्रव्यसंग्रह के टीकाकार ब्रह्मदेव ने ग्रन्थ के प्रारम्भिक परिचय में लिखा 'अथ मालवदेशे धारानामनगराधिपति राजभोजदेवाभिधानकलिकालचक्रवर्तीसम्बन्धिन: श्रीपाल मण्डलेश्वरस्य सम्बन्धिन्याश्रमनामनगरे श्री मुनिसुव्रततीर्थंकर चैत्यालये शुद्धात्मद्रव्यसंदित्ति समुत्पन्नसुखामृतरसास्वादविपरीतनारकादिदःखभयभीतस्य परमात्मभावनोत्पन्न सुखसुधारसपिपासितस्य भेदाभेदरत्नत्रयभावनाप्रियस्य भव्यवरपुण्डरीकस्य भाण्डागाराधनेकनियोगाधिकारिसोमाभिधानराजश्रेष्ठिनो निमित्तं श्री नेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवैः पूर्वं षड्वंशतिगाथाभिलघुद्रव्यसंग्रहं कृत्वा पश्चाद्विशेषतत्त्वपरिज्ञानार्थं विरचितस्य वृहद्रव्यसंग्रहस्याधिकारशुद्धिपूर्वकत्वेन वृत्ति: प्रारम्यते। 14 मालवदेश में धारा नगरी का स्वामी कलिकालचक्रवर्ती राजा भोजदेव था। उससे सम्बद्ध मण्डलेश्वर श्रीपाल के आश्रम नामक नगर में श्री मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकर के चैत्यालय में भाण्डागार आदि अनेक नियोगों के अधिकारी सोम नामक राजश्रेष्ठि के लिये श्री नेमचिन्द्र सिद्धान्तिदेव ने पहले 26 गाथाओं के द्वारा लघु द्रव्यसंग्रह नाम ग्रंथ रचा। पश्चात् विशेष तत्वों के ज्ञान के लिये वृहद्रव्यसंग्रह नाम ग्रंथ की रचना की। उनकी वृत्ति को मैं प्रारम्भ करता हूँ। उक्त उद्धरण से स्पष्ट है कि लघुद्रव्यसंग्रह और वृहद्रव्यसंग्रह के रचयिता नेमिचन्द्र की उपाधि सिद्धान्तिदेव थी न कि सिद्धान्तचक्रवर्ती। यद्यपि इनका सम्बन्ध नन्दि संघ के देशीय गण से है, तथापि दोनों अभिन्न नहीं हैं। ये तो वे नेमिचन्द्र हैं जिनका उल्लेख वसुनन्दि ने अपने श्रावकाचार में अपने गुरु के रूप में किया है तथा उन्हें जिनागम रूप समुद्र की बेलातरंगों से धुले हृदय वाला एवं जगद्विख्यात कहा है - सिस्सो तस्स जिणागम - जलणिहि - वेलातरंग - धोयमणो। संजाओ सयल-जए विक्खाओ नेमिचन्द ति॥ तस्स पसाएण मए आयरियपंपरागयं सत्थं। वच्छल्लयाए रइयं भदियाणमुवासयज्झयणं।।' वसुनन्दि का समय वि.सं. 1150 (1093 ई.) के लगभग है। यह समय नेमिचन्द्र अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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