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वह ऐसी कोई भी नीति निर्धारित नहीं कर सकता था जिसके फलस्वरूप हिन्दू शक्तिशाली हिन्दू राजा और जमींदार उसके विरोध में आ जायें तथा उसके हिन्दू सरदार बगावत कर दें अन्यथा उसका असफल होना निश्चित था ।
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इन बातों को ध्यान में रखते हुए ही उसने अपने राज्य में धर्म निरपेक्ष कानूनों, जवाबित को जारी किया उसके इन आदेशों को जवाबित ए आलमगीरी में संग्रहीत किया गया है। उसके राज्य में यद्यपि नए हिन्दू मंदिरों, यहूदियों के मंदिरों तथा गिरजाघरों के बनाने की मनाही थी तदापि पुराने धर्मायतनों के मरम्मत की पूरी छूट थी।
आम जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए उसने सार्वजनिक स्थानों पर शराब तथा भांग जैसे नशीले पदार्थों के सेवन पर पाबंदी लगा दी थी। वेश्यालयों तथा जुओं के अड्डों पर भी पूर्ण नियन्त्रण था। कुछ विद्वानों का मत है कि वह कट्टर मुसलमान था, अतः जो कार्य इस्लाम धर्म सम्मत नहीं थे उन पर उसने पाबंदी लगा दी। लेकिन वास्तव में उसका उद्देश्य अंध विश्वास को समाप्त करना तथा प्रजा का नैतिक उत्थान करना था । वैश्यावृत्ति पर नियन्त्रण तथा नशाबंदी के कारण ही देश में चारों और शान्ति थी। कहीं भी किसी प्रकार का भय नहीं था।
वस्तुत: औरंगजेब धर्म को राजनीति से जोड़ने के पक्ष में कभी नहीं रहा। एक अवसर पर एक ऐसे प्रार्थना पत्र पर जिसमें किसी पद पर धार्मिक आधार पर नियुक्ति की मांग की थी, औरंगजेब ने लिखा 'सांसारिक मामलों में धर्म का क्या स्थान ? और धर्म के मामलों में धर्माधता का क्या स्थान ? तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए है और मेरा धर्म मेरे लिए जैसा कि सुझाया गया है, अगर मैं भी इस नियम को मान लूं तो सभी (हिन्दू) राजाओं और उनके अनुयाइयों को खत्म कर देना मेरा कर्त्तव्य हो जायेगा।''
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जैन कवियों द्वारा प्रशंसा
औरंगजेब के शासनकाल में कई जैन कवि हुये हैं इनमें से रामचन्द्र, जगतराम, भैया भगवतीदास, बुलाकीदास, तथा विनोदीलाल के नाम उल्लेखनीय हैं। इन सभी कवियों ने औरंगजेब की बहुत प्रशंसा की है इनके अनुसार औरंगजेब अनुशासन प्रिय तथा जनता के हितों की रक्षा करने वाला था। उसके राज्य में किसी प्रकार का डर नहीं था, तथा सभी लोग सुख से रहते थे उसकी आज्ञा को सभी लोग मानते थे।
रचनाकाल सन् 1663 से 1693 तक रहा है। उन्होंने अपनी
कवि रामचन्द्र का
रचना 'रामविनोद' में लिखा है
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कवि जगतराम के पितामह शहर गुहाना के रहने वाले थे किन्तु उनके पिता अपने भाई के साथ पानीपत आकर रहने लगे थे। जगतराम अपने परिवार सहित आगरा आ गये। वहीं पर उन्होंने साहित्य सृजन किया इनका रचनाकाल सन् 16651773 रहा है। कहते हैं कि ये औरंगजेब के राज्य में किसी उच्च पद पर आसीन थे तथा इन्हें राजा की पदवी मिली थी। औरंगजेब के राज्य में आगरा की स्थिति का वर्णन करते हुए अपनी रचना 'पद्मनन्दिय पंच विशंतिका' की प्रशस्ति में कवि जगत राम लिखते हैं
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'मरदानौ अरू महाबली, अवरंग साहि नरंद |
तास राज मैं हर्ष सुं, रच्यो शास्त्र आनन्द ॥ ' 3
'सहर आगरी है सुख थान, परतषि दीसे स्वर्ग विमान । चारों वरन रहें सुख पाई, तहां बहु शास्त्र रच्यो सुखदाई ॥"
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अर्हत् वचन, अप्रैल 2001
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