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मंदिरों को तुड़वाने के आम आदेश कभी नहीं दिये बल्कि कट्टर मुसलमान होने के बावजूद भी उसने हिन्दू मंदिरों तथा मठों को अनुदान दिया। वह जिन मंदिरों को विरोधी प्रचार का केन्द्र समझता था, उनको ही तुड़वाने का आदेश देता था। उसे जरा भी शक हो जाये कि अमुक मंदिर में उसके विरूद्ध षडयंत्र रचा जा रहा है या ये मंदिर राजनैतिक गतिविधियों के केन्द्र बन गये हैं तभी वह उन मंदिरों में हस्तक्षेप के आदेश देता थ बनारस तथा मथुरा के मंदिर तुड़वाने के भी यही कारण थे। उसका विश्वास था कि इतने बड़े राज्य को षडयंत्रकारियों से मुक्त रखे बिना वह निर्विघ्न शासन नहीं कर सकता है। अत: हिन्द मंदिरों के प्रति उसकी नीति का आधार धार्मिक नहीं बल्कि राजनैतिक था।
औरंगजेब जजिया कर लगाने का भी इच्छुक नहीं था। इसी कारण अपने शासन के 22 वर्षों तक उसने जजिया कर नहीं लगाया। लेकिन उसके धर्म गुरु इसे लगाने पर बहुत जोर दे रहे थे। औरंगजेब इन धर्म गुरुओं का विश्वास किसी भी कीमत पर बनाये रखना चाहता था। इसीलिए उसने इनके दबाव में आकर इस कर को लागू तो कर दिया लेकिन स्त्रियों, बच्चों, अपंगों, निम्न आय के व्यक्तियों तथा सरकारी कर्मचारियों को इस कर से मुक्त रखा। प्राकृतिक दुर्योगों की स्थिति में इस कर की वसूली में नरमी बरती जाती थी। इस कर से जो भी आमदनी होती थी उसे मुसलमान धर्म के नेताओं जिनमें अधिकतर बेरोजगार थे, के लिए खर्च किया जाता था। मराठों, जाटों तथा सिक्खों के विद्रोह -
अपने शासनकाल में औरंगजेब को कई कठिन राजनैतिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। इनमें से दक्षिण में मराठों, उत्तर में जाट तथा राजपूतों तथा उत्तर पश्चिम में अफगान और सिक्खों के विद्रोह प्रमुख थे। कहा जाता है कि अफगानों के विद्रोह को छोडकर ये सभी विद्रोह औरंगजेब की संकीर्ण धार्मिक नीतियों के विरूद्ध हिन्दुओं की प्रतिक्रिया थी। लेकिन यह कहना सही नहीं है। इन विद्रोहों के अलग-अलग कारण थे लेकिन धार्मिक कारण कोई नहीं था।
राजपूतों के मामले में मूल समस्या उत्तराधिकार के मामले को लेकर थी। मराठों के मामले में समस्या स्थानीय स्वतंत्रता की थी। जाटों के विद्रोह के पीछे किसानों और भूमि से सम्बन्धित सवाल थे लेकिन जाटों की राजनैतिक महत्वाकांक्षायें बढ़ती चली गयीं और ये प्रथक् राज्य स्थापित करना चाहते थे। जाटों के संबंध में एक बात यह उल्लेखनीय है कि इनके विद्रोहों के समय स्थानीय हिन्दू जमीदारों ने मुगलों का साथ दिया। एक बार के विद्रोह को दबाने के लिए हिन्दू राजा बिशनसिंह को ही भेजा था। यदि जाटों के विद्रोहों के कारण धार्मिक होते तो ये हिन्दू राजा तथा जमींदार मुगलों का साथ क्यों देते?
प्रारंभ में सिक्खों का आंदोलन धार्मिक था, लेकिन धीरे-धीरे इस आन्दोलन ने राजनैतिक रूख अपना लिया। कालान्तर में सिक्खों ने सेना संगठित कर ली तथा ये भी स्वतंत्र राज्य की स्थापना चाहते थे। ।
औरंगजेब अपने राज्य में किसी भी ऐसी सैनिक शक्ति को उभरने से पहले ही नष्ट कर देना चाहता था जो अलग राज्य की स्थापना कर सके। इसी कारण उसे जाट, मराठा, अफगान तथा सिक्खों के साथ कई बार युद्ध लड़ने पड़े। वह किसी भी कीमत पर इनकी शक्ति को समाप्त कर देना चाहता था। सिक्खों के गुरु तेग बहादुर तथा गुरु
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अर्हत् वचन, अप्रैल 2001
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