Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 54
________________ डॉ. राजाराम जैन के अनुसार - महाकवि रइधू के उपलब्ध समस्त ग्रंथों में से तीन ग्रंथ सचित्र हैं - पासणाह चरिउ, संतिणाह चरिउ एवं जसहर चरिउ।13 इन तीन पाण्डुलिपियों के चित्र अपभ्रंश चित्रकला के प्रतिनिधि चित्र हैं। इन पोथी चित्रों में ग्रंथ लेखन एवं चित्रण में अनेक प्रयोग हुए - 1. ग्रंथ के पृष्ठ के पार्श्व में चित्रण एवं बीच में लेखन। 2. ग्रंथ के बीच में यत्र - तत्र चित्रण। 3. ग्रंथ के प्रत्येक पृष्ठ के एक ओर लेखन और सामने चित्रण हैं। 4. ग्रंथ के पृष्ठ के ऊपरी भाग पर छन्द या पद लेखन एवं नीचे चित्रांकन हैं। उपर्युक्त ढंग से लिखित एवं चित्रित पृष्ठों को पुस्तकाकार रूप में ग्रंथित किया गया है, जिनसे किसी भी काव्य के क्रम का सहज ही ज्ञान हो सके। 1. पासणाह चरिउ - यह प्रति सचित्र है। इसमें प्रसंगानुसार तिरंगे, चौरंगे एवं बहरंगे छोटे एवं बड़े सभी कुल मिलाकर 61 चित्र हैं।14 यह प्रति तोमर कालीन ग्वालियर चित्रकला के उदाहरण प्रस्तुत करती है। पासणाह चरिउ के चित्रों का संयोजन दक्षतापूर्ण है। यद्यपि इसकी रेखाएं अपनी अधिकांश शक्ति खो चुकी हैं। इसका दुर्बल रेखांकन और चित्रण विशेष उल्लेखनीय नहीं है लेकिन चित्रों की शैली ने उनमें गत्याकता की भावना को संजोये रखा है। 15 पासणाह चरिउ की पाण्डुलिपि (1442 ई. ग्वालियर) एक पत्र पर राजसभा का संचालन करता इन्द्र है। चित्र में इन्द्र के ऊपर छत्र लगा हुआ है, इन्द्र के पीछे एक पुरुष चवर दुरा रहा है। इन्द्र के सामने तीन पुरुषाकृति हैं। जिनमें से दो खड़ी व एक बैठी हैं। चित्र के बायें तरफ ऊपर की ओर दो नारियों का बातचीत की मुद्रा में अंकन है। पुरुषों ने अधोवस्त्र, धोती व उत्तरीय कंधे पर डाला हुआ है। सिर पर मुकुट व कानों कें कुण्डल हैं। नारी आकृति साड़ी पहने हुए है, जूड़ा बांधे हैं, कानों में कुण्डल व हाथों में चडियां पहने हैं। चित्र के बायें ओर व ऊपर लेखन है।16 पासणाह चरिउ में एक चित्र चतुर्भजी सरस्वती संबंधी है। सरस्वती के दांये हाथ में पोथी, बायें हाथ में वीणा, दूसरे दायें हाथ में कमण्डलु एवं दूसरे बायें हाथ में माला है। चित्र की पृष्ठभूमि में एक तोरण द्वारा है। जिसके ऊर्ध्वभाग के मध्य में एक विशाल शिखर तथा उसके आसपास तीन - तीन छोटे शिखर अंकित हैं। उन पर दो पताकाएं फहरा रही हैं। सरस्वती के दायें ओर वाले चित्र में पांच व्यक्ति अंकित हैं। वे तीन एवं दो पंक्ति बनाये हुए हैं। डॉ. राजाराम जैन के अनुसार यह चित्र ऐसा प्रतीत होता है कि चित्रकार ने इसमें महाकवि रइधु व उनके गुरु एवं आश्रयदाता का चित्रण किया है। पासणाह चरिउ के एक अन्य चित्र (नीचे) में भगवान पार्श्वनाथ को अपने परिचारकों के साथ दिखाया है। - M SO 52 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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