Book Title: Arhat Vachan 2001 04
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 77
________________ टिप्पणी-2 7 अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) आशीर्वाद, संगीत और प्रार्थना का प्रभाव - सुलतानसिंह जैन* आशीर्वाद प्रत्यक्ष में दिखाई देने वाली कोई वस्तु तो नहीं है परन्तु इसका अर्थ यह कदाचित नहीं है कि न दिखाई देने वाली वस्तु का कोई अस्तित्व नहीं है, अस्तित्व है। इस क्रिया में आशीर्वाद देने वाला और लेने वाला दो व्यक्ति होते हैं, दोनों के मध्य गुरु शिष्य के भाव होते हैं, माँ - बाप बेटे के भाव होते हैं। आशीर्वाद देने वाले की आकांक्षा होती है कि आशीर्वाद पाने वाले की हर शुभ इच्छा पूरी हो, वह शुभाशीष कहते हुए उसके (शिष्य) सिर पर हाथ फेरते हुए दर्शाता है कि मेरे हृदय की अन्तरंग भावनायें तुम्हें प्राप्त हों। सिर आत्मा का कार्यस्थल है अत: शिष्य सिर झुकाते हुए नीचे को झुकता है। गुरु उसे अपने हृदय के पास रोकने का प्रयत्न करता है मानों कह रहा हो कि सुन मेरे हृदय की धड़कन जो आशीर्वाद दिये जाने की खुशी में बढ़ गई है। शिष्य गुरु के पैरों को छूने का प्रयत्न करता है या छूता है। ऐसा करने में शिष्य का हृदय झुकता है। खड़े होने की स्थिति में मस्तिष्क को जो रक्त प्रवाह मिल रहा था उसकी मात्रा बढ़ जाती है तथा उसके रीढ़ की हड्डी जिसमें संवेदनशील तन्तु होते हैं, उस पर गुरु की दृष्टि टिक जाती है। दृष्टि के रुकने में एक मौन शक्ति और जादू है। इस पूरी प्रक्रिया में हालांकि कुछ ही सेकण्ड लगते हैं परन्तु इसके प्रभाव के पश्चात् गुरु और शिष्य दोनों के चेहरों पर मुस्कान और कृतज्ञता के भाव उभर आते हैं। आशीष की क्रिया में जीवन का मधुर संगीत छिपा हुआ है। संगीत का जादू मुग्ध ही नहीं करता, रोगमुक्त भी करता है। मनपसन्द संगीत होने पर ही संगीत ऐसा प्रभाव डालता है मानों संग में कोई मीत ही हो, संगीत का प्रभाव मनुष्य के मस्तिष्क पर पड़ता है जो मानव के रक्त संचार व्यवस्था और संवेदनशील तन्तुओं को प्रभावित करता है। मनुष्य अपने दुख को भी भूलकर संगीत की लय के साथ झूम उठता है। उसकी उंगलियाँ थिरकने लगती हैं। उसके गले में धीमी ध्वनि लिये हुए एक लय फूट पड़ती है। ये ही वे क्षण और पल होते हैं जब उनकी निराशायें धराशाही हो जाती हैं. उनमें धनात्मक विचार पनप जाते हैं जो प्रसन्नता लिये हुए होते हैं। संगीत का जाद पशु पक्षियों पर भी पड़ता है। प्रार्थना से स्वास्थ्य लाभ - सामान्यतया मनुष्य अपने लिये ही ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसकी इच्छाओं की पूर्ति हो। परन्तु यदि उसका कोई प्रिय या सगा सम्बन्धी किसी दुख या कष्ट या रोग में फंस गया हो तब भी मनुष्य (उसका संरक्षक) ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसके प्रियजन को स्वास्थ्य लाभ दे। इस प्रार्थना का उसके प्रियजन को पता हो भी सकता है और नहीं भी। प्रार्थना अपने से छोटों के लिये या बड़ों के लिये एक ही भाव से की जाती है। प्रार्थना करने की क्रिया में मनुष्य के भाव ईश्वर से आशीर्वाद, शुभाशीष या वरदान लेने की मुद्रा में होते हैं कि ईश्वर अवश्य ही उसकी इच्छा को पूरा करेंगे। प्रार्थना करने से पूर्व या पश्चात वह मनुष्य या वे मनुष्य रोगी के पास जाते हैं, कहते हैं ईश्वर का नाम लो, सब ठीक करेंगे। यह भी तथ्य है कि डाक्टर अपने मरीज को दवा तो देता ही है, साथ में वह भी ईश्वर से दुआ मांगता है कि उसका मरीज ठीक हो। ये सब के विचारों की तरंगें मौन में ही रोगी के प्रति अपनी क्रियायें 75 अर्हत् वचन, अप्रैल 2001 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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